Saturday, November 8, 2014

उत्तराखंड के गांधी श्री बडोनी जी को नमन


उत्तराखंड राज्य निर्माण के १४ वर्ष पूरे हो गए हैं. सबसे पहले उत्तराखंड के शहीदों को शत-शत नमन. जब हम बात उत्तराखंड की करें तो अलग राज्य के सपने को हकीकत में बदलने का श्रेय जाता है स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी को. बडोनी जी का जन्म उत्तराखंड के टिहरी जनपद के जखोली ब्लाक ११ गांव हिंदाव के अखोडी गांव में २४ दिसम्बर १९२५ को हुआ. पहाड़ की प्रतिकूल परिस्थितियों में निरंतर जनता के अधिकारों के लिए सतत संघर्षो से जूझने का  जज्बा श्री बडोनी जी में था.
आजादी के बाद कामरेड पीसी जोशी के सम्पर्क में आने के बाद बडोनी जी पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हुए. बडोनी जी की चिंता पहाड़ को लेकर उसके हकों की लड़ाई को लेकर रहती थी. बडोनी जी का सपना पहाड को आत्मनिर्भर राज्य बनाने का था,
उत्तराखंड की हर विशेषताओं को अलग पहचान दिलाने, पहाड़ की लोककला को महत्वपूर्ण स्थान दिलाने वे पहाड़ की संस्कृति बचाने के हिमायती थे. वर्ष १९५८ में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्होंने हिंदाव के लोक कलाकार श्री शिवजनी जी (ढुंग), श्री गिराज जी (ढुंग) के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बंधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे. जवाहर लाल नेहरु जैसे महान नेताओं को भी आकर्षित करने वाले श्री बडोनी जी पाहड के मुद्दों को लेकर कभी राष्ट्रीय पार्टियों के सामने नतमस्तक नहीं हुए और अपने सिधान्तों पर दृढ रह कर देवप्रयाग विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव डे. उनकी मुख्य चिंता इसी बात पर रहती थी कि पहाडों का विकास कैसे हो. जनता में उनकी सादगी और लोकप्रियता के बल पर इन्द्रमणि बडोनी १९६७, १९७४, १९७७ में देवप्रयाग विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे. उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे. पहाड़ के प्रति उनके चिंतन ने श्री इन्द्रमणि बडोनी जी को उत्तराखण्ड का महानायक और आंदोलन का अग्रदूत बनाया.
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिए वह १९८० में उत्तराखण्ड क्रांति दल में शामिल हुए. उन्हें पार्टी का संरक्षक बनाया गया. १९८९ से १९९३ तक उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति के लिए पर्वतीय अंचलों में व्यापक जनसम्फ करके जन जागृति अभियान चलाया और लोगों को अलग राज्य की लडाई लडने के लिए तैयार किया. १९९४ में व्यापक आंदोलन शुरु होने के बाद वह प्राणमन से आंदोलन के प्रचार-प्रसार में लग गये. स्कूल कालेजों में आरक्षण व पंचायती सीमाओं के पुनर्निधारण से नाराज इन्द्रमणि बडोनी ने २ अगस्त १९९४ को कलेक्ट्रेट कार्यालय पर आमरण अनशन शुरु कर दिया जो उत्तराखण्ड आंदोलन के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. उनके इसी आमरण अनशन ने आरक्षण के विरोध को उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में बदल दिया. जिसके फलस्वरूप उत्तरांचल राज्य की स्थापना हुई. स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी अहिंसक आंदोलन के प्रबल समर्थक थे. इसलिए श्री इन्द्रमणि बडोनी जी के बारे में अमरीकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने स्व. इन्द्रमणि बडोनी को पहाड के गांधी” की उपाधि दी थी. वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि उत्तराखण्ड आंदोलन इन्द्रमणि बडोनी की भूमिका आजादी के संघर्ष में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सामान थी. किन्तु उत्तरप्रदेश की तत्कालीन सरकार की हठधर्मिता के कारण उत्तराखंड का आन्दोलन पुलिस ज्यादतियों के कारण आंदोलन हिंसक हो गया था. किन्तु लम्बे संघर्ष का सुखद परिणाम देखने से पूर्व ही १८ अगस्त १९९९ को श्री बडोनी जी का निधन हो गया. राष्ट्रीय दलों की राजनीति और समय का खेल देखिये बडोनी जी के संघर्ष से ९ नवंबर २००० को २७वे राज्य के रूप में जो अलग राज्य मिला उसका एक तो नाम उत्तरांचल रखा गया वहीं पहाड़ की बुनियाद पर बने राज्य का पहला मुख्यमंत्री भी कोई  पहाड़ी नहीं बन सका. उत्तराखंड के स्थापना दिवस पर उत्तराखंड के गांधी को शत-शत नमन.  
  

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