उत्तराखंड राज्य निर्माण के १४
वर्ष पूरे हो रहे हैं. आएं जाने कैसा बना हमारा अलग राज्य.
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भारतीय स्वतंत्रता आन्देालन की एक इकाई के रूप में उत्तराखंड
में स्वाधीनता संग्राम के दौरान १९१३ के कांग्रेस
अधिवेशन में उत्तराखण्ड के अधिकांश प्रतिनिधि सम्मिलित हुए. इसी वर्ष उत्तराखण्ड के अनुसूचित
जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक
व्यापक शिल्पकार
महासभा के रूप में हुआ.
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१९१६ के सितम्बर माह में गोविन्द बल्लभ
पंत, हरगोविन्द
पंत, बद्री दत्त पाण्डेयइन्द्रलाल
शाह मोहन सिंह
दड़मवाल चन्द्र लाल
शाह प्रेम बल्लभ पाण्डेय, भोलादत्त
पाण्डेय और लक्ष्मीदत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ
परिषद् की स्थापना की गई जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखण्ड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजना था. १९२६ तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारों की दिशा के अतिरिक्त निश्चित
राजनैतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियाँ संपादित कीं. १९२३ तथा १९२६ के प्रान्तीय
षरिषद् के चुनाव में गोविन्द बल्लभ
पंत हरगोविन्द
पंत,मुकुन्दी
लाल तथा बद्री दत्त पाण्डेय ने प्रतिपक्षियों
को बुरी तरह पराजित किया.
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आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई १९३८ में तत्कालीन
ब्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों
के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के आंदोलन का
समर्थन किया.
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सन् १९४० में हल्द्वानी सम्मेलन में बद्री दत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को
विशेष दर्जा तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊँ-गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन करने की माँग रखी. १९५४ में विधान परिषद के सदस्य इन्द्र
सिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ
पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने
का आग्रह किया तथा १९५५ में फ़ज़ल अली
आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित
करने की संस्तुति की.
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वर्ष १९५७ में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी.टी. कृष्णम्माचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष
ध्यान देने का सुझाव दिया. १२ मई १९७० को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान राज्य तथा
केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की गई और २४ जुलाई १९७९ को पृथक राज्य के गठन के लिये मसूरी में उत्तराखण्ड
क्रान्ति दल की स्थापना की गई. जून १९८७ मेंकर्णप्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखण्ड के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर १९८७ में
पृथक उत्तराखण्ड राज्य के गठन के लिये नई दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवंहरिद्वार को भी प्रस्तावित राज्य में सम्मिलित करने की माँग की गई.
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१९९४ उत्तराखण्ड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से
आन्दोलन किया. मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज हो गया. उत्तराखण्ड
क्रान्ति दल के नेताओं ने अनशन किया. उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की माँग के समर्थन में
लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएँ हुईं. उत्तराखण्डआन्दोलनकारियों
पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाईं गईं. संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में २ अक्टूबर, १९९४ को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया. इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से
हज़ारों लोगों की भागीदारी हुई. प्रदर्शन में
भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर
नगर में बहुत प्रताड़ित किया गया और उन पर पुलिस ने
गोलीबारी की और लाठियाँ बरसाईं तथा महिलाओं के साथ अश्लील व्यवहार और अभद्रता की
गयी. इसमें अनेक लोग हताहत
और घायल हुए. इस घटना ने उत्तराखण्ड
आन्दोलन की आग में घी का काम किया. अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध मेंउत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलीबारी तथा अनेक
मौतें हुईं.
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७ अक्टूबर, १९९४ को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो हई
इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया.
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इसी बीच श्रीनगर में श्रीयंत्र टापू में अनशनकारियों
पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए.
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१५ अगस्त, १९९६ को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी.
देवेगौड़ा ने उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा लालकिले से की.
१९९८ में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से
उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा. उ.प्र. सरकार ने २६ संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में
पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा. केन्द्र सरकार ने २७ जुलाई, २००० को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक २००० को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो १ अगस्त, २००० को लोकसभा में तथा १० अगस्त, २००० अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया. भारत के
राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन
विधेयक को २८ अगस्त, २००० को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक
अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही ९ नवम्बर २००० को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व मे आया जो अब उत्तराखण्ड नाम से अस्तित्व में है
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