Tuesday, June 29, 2010

शिलासौड़ में जात या रात्रि जागरण

वर्षभर में एक बार होने वाली शिलासौड़ की रात्रि जात का विशेष महत्व है. आज क्योंकि जगदी जात एवं अगले दिन शिलासौड़ में लगने वाले मेले का स्वरूप बढ़ता जा रहा है, परंतु अपने नाम के अनुरूप शिलासौड़ में रात्रि जात ही देवी का मुख्य आकर्षण है. शिलासौड़ में जगदी की रात में चारों पहर पूजा होती है. यहां श्रद्धालू अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए दूर-दूर से आते हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में 'दिवारूÓ कहा जाता है. अगले दिन यहां बड़ा मेला लगता है. रात्रि जात में जगदी की चारों पहरों की पूजा का विशेष महत्व है. स्थानीय लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने के लिए रात भर अखंड दीप जला कर जागरण करते हैं. जगदी के रात्रि जागरण के अखंड दीप अगले दिन अपने घरों तक लाना अति शुभप्रसंग माना जाता है. माना जाता है कि यद्यपि जगदी के दर्शन मात्र से ही लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं, परंतु जो जगदी के रात्रि जागरण के साक्षी बनते हैं उनकी मनोकामनाएं ओर भी शीघ्र पूर्ण होती हैं. इधर, हिंदाव के गांवों में पूर्व दिवस से ही जात की चहल-पहल शुरू रहती है और शिलासौड़ मेले में पहुंचने के लिए लोग सुबह-सुबह घरों को छोड़ देते हैं. दूर-दूर से लोग समय पर शिलासौड़ पहुंचने के लिए रंग-रंगीले झुंडों में यात्रा मार्ग में नजर आते हैं. सुबह जगदी की पूजा-पाठ के बाद जैसे-जैसे दिन का सूर्य अपने यौवन पर होता है, शिलासौड़ में मेलार्थियों की भीड़ बढऩे लगती है और फिर आम मेलों की तरह यह मेला भी भीड़-भाड़ धींगामस्ती में तब्दील हो जाता है. मेले में कई दुकानें लगी होती हैं, जिनमें चूड़ी-बिंदी, जलैबी-पकोड़ी से लेकर हर माल खूब बिकता है.

अग्नि परीक्षा

अग्नि परीक्षा के दौर से भी गुजरी जगादीअस्था और विश्वास के बीच कभी ऐसे भी छण आते हैं, जब मनुष्य का अहम सृष्टि प्रदत्त व्यवस्थाओं को नकारते हुए स्वयं को सर्वोत्तम मानने की भूल कर बैठता है. हिंदाव की जगदी को भी इस दौर से गुजरना पड़ा और अंतत: देवी के चमत्कार के आगे नौज्यूला के लोग नतमस्तक हुए. हमारे बुजुर्गों ने जगदी सौड़ से मेला समापन के बाद बिना पीछे मुड़े भागने का रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि एक बार जब जगदी की जात मेले के समापन से पूर्व शिलासौड़ में सभी बाकियों पर देवी-देवता अवतरित हुए तो मंदिर परिक्रमा के दौरान जगदी के बाकी की टक्कर से स्थानीय पंच अध्वाण महापुरुष (तत्कालीन संयाणा) की टोपी सिर से नीचे जमीन पर गिर गई. अपनी टोपी के नीचे गिरने को अपना अपमान समझते हुए संयाणा जी ने निर्णय दिया कि देवता की सच्चाई की होनका साधना (अग्नि परीक्षा) ली जाएगी. पंचों नेे इस निर्णय के मुताबिक आस-पास से बड़ी मात्रा में लकडिय़ां एकत्र कर 'होनकाÓ की तैयारी की. बताते हैं जब अग्नि प्रचंड भभकने लगी फिर ढोल बजाकर जगदी की अग्नि परीक्षा का आह्वïान किया गया. मायावी माया के लिए यह ऐसी घड़ी थी कि इंसानों और देवताओं के बीच के अंतर को मूर्त रूप में सिद्ध कर जनविश्वास पर देवशक्ति की छाप छोडऩी थी. अत: जगदी अपने बाकी पर स्वयं अवतरित होकर ढोल गर्जना के साथ आग की लपटों में समा गई. जनश्रुति है कि जैसे ही जगदी का बाकी पत्थर की शिला से अग्रि में कूदा सारे लोग वहां से भाग खड़े हुए.

12 वर्ष के बाद होता है जगदी का जगदी का महायज्ञ

होम १२ वर्षों के अंतराल पर आयोजित किया जाता है. जगदी का महायज्ञ 'होमÓनौज्यूला का सबसे बड़ा प्रमुख यज्ञ है, जिसमें नौज्यूला के सभी थोकों के मान्यवर रोज यज्ञ में कई ब्राह्मïणों के मंत्रोचार के साथ आहूतियां देते हैं. होम के लिए पंचों की विशेष बैठकें होती हैं, जिसमें प्रत्येक परिवारों पर फांट (चंदा) निर्धारित कर कमेटी चंदा जमा करने की सुनिश्चिता तय करती है. महायज्ञ की पंचांगसम्मत शुभ मुहूर्त के मद्देनजर तिथि निर्धारित होती है. नारायण में फिर सारी तैयारियों के बाद होम शुरू होता है. जिस वर्ष होम होता है उस वर्ष जगदी शिलासौड़ से सीधे क्षेत्र भ्रमण पर निकल पड़ती है और प्रत्येक घरों में जाकर प्रजा की सुध लेती है. लोग अपने आंगन में जगदी का जर्बदस्त स्वागत करते हैं. देवी-बाकियों को पूजा-पिठाईं भेंटकर परिवार के सुख-चैन की कामना करते हैं. दिन भर गांव में प्रत्येक घरों की शुध लेने के बाद एक रात देवी उसी गांव में निवास करती हैं और गांव में सार्वजनिक प्रसाद भंडारे का आयोजन गांववासियों द्वारा किया जाता है. कई गांवों में चढ़ावे स्वरूप बकरे भी जगदी को भेंट किए जाते हैं. एक गांव का भ्रमण पूर्ण होने पर जगदी अगले पड़ाव की ओर रुख करती है और फिर इसी प्रकार सभी घरों एवं स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिरों में भेंट देती हैं. जिस गांव में जगदी दस्तक देती है उस गांव के लोग गाजे-बाजे के साथ जगदी का स्वागत करते हुए गांव की सीमा तक जगदी के साथ-साथ चलते हैं. साथ ही कमेटी के सदस्य एवं प्रमुख बाकी दिनजात से ही जगदी के साथ मौजूद रहते हैं. इसी प्रकार पूरी प्रजा दर्शन के बाद जगदी यज्ञस्थल नारायण में पूजा के लिए विराजमान होती है. ९ दिनों तक चलने वाले होम में प्रत्येक दिन के कार्यक्रम निर्धारित होते हैं और व्यवस्थित क्रम में ९ दिनों तक जारी रहते हैं.

होम का प्रमुख ओहदा था जगपति

किसी भी कार्य की सकुशल संचालन के लिए पहली आवश्यकता होती किसी सेनापति की, जिसके नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रम को निर्विघ्न संपन्न कराया जा सके. पूर्वजों द्वारा स्थापित इस भव्य सार्वजनिक यज्ञ (होम) के लिए भी नेतृत्व हेतु किसी एक व्यक्ति को 'जगपतिÓ नियुक्त करने की परंपरा शुरू हुई, लेकिन जगपति अपने नाम के अनुरूप होम संचालित करने का एक अतिविशिष्टि ओहदा था. सारे कार्यक्रम जगपति के निर्देश पर होते थे और इस पद पर यहां के नौज्यूला के प्रतिष्ठत व्यक्ति को आसीन किया जाता था. कालांतर में विभिन्न थोकों के विस्तार होने से व्यवस्थाओं में भी परिर्वतन हुए.

होम का प्रमुख आकर्षण जल घड़ी

हमारी हिंदू संस्कृति में कलश अथार्त कुंभ का बड़ा महत्व है. हिंदृ रीति-रिवाजों जैसे शादी-विवाह, पूजा-पाठ सहित सभी आवश्यक क्रियाओं में जलकुंभ कहीं न कहीं प्रमुख रूप से शामिल किए जाते हैं. उतराखंड में पांडव लीला एवं सार्वजनिक पूजाओं में कार्यक्रम संपन्न होने से पूर्व या अंतिम दिन प्रात:काल में जलघड़ी का विशेष आयोजन किया जाता है. नारायण मंदिर में होम के अंतिम दिन जलघड़ी की शोभायात्रा होम का विशेष आकर्षण है. हजारों दर्शकों से खच्चाखच भरे सीढ़ीनुमा खेतों के बीच मां जगदम्बा की डोली की अगुवाई में जलघड़ी की शोभायात्रा अति दर्शनीय होती है. जगदी की शोभायात्रा दर्जनों ढोल-नगाढ़ों के बीच नारायण मंदिर से कलश भरने के लिए स्थानीय जलस्रोत के लिए निकलती है. यहां जलस्रोत से मंत्रोच्चार के साथ जगदी स्नान कर अन्य लोग भी इस पवित्र जल की बूंदों से अपने को पवित्र कर धन्य समझते हैं. स्नान आदि के बाद जलघड़ी को भरकर जगदी का बाकी इसे सिर पर धारण कर मंदिर की ओर लौटते हैं. सैकड़ों लोगों द्वारा पंक्तिबद्ध होकर ऊपर से श्वेत एवं रंगीन वस्त्रों से ढंकी जलघड़ी की शोभायात्रा इस दौरान अति मनोहारी छटा विखेरती है.

संचालन के लिए नौज्यूला के पंचों के 16 गांवों की कमेटी

हिंदाव की जगदी यद्यपि क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख सार्वजनिक देवी है, परंतु जात, महायज्ञ, पूजा आदि के सफल संचालन के लिए नौज्यूला के पंचों के 16 गांवों की 32 सदस्यीय समिति बनाई गई है. इस समिति का नियत कार्यकाल खत्म होने पर नई समिति चयनित की जाती है. कमेटी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष के साथ ही प्रत्येक थोक के दो लोग सक्रिय सदस्य के रूप में चुने जाते हैं. जगदी जात एवं अन्य सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक संपन्न कराना कमेटी की प्रमुख जिम्मेदारी है. कमेटी का दायित्व होता है कि जब एक बार जगदी की जात या अन्य कार्यक्रम तय हो जाएं, तो फिर चाहे कोई भी बाधा रास्ते में क्यों न आ जाए, कार्यक्रम को संपन्न कराना है. जगदी जात के अवसर पर चाहे जगदी का शृंगार करना हो, या फिर शृंगार के बाद बाहर गिमगिरी पर निकालना हो, कमेटी के सदस्य तत्परता के साथ अपने कार्यों को अंजाम देते हैं. जगदी की यात्रा में कमेटी के सदस्य बिल्कुल एक तरह से जगदी के लिए सुरक्षा घेरा बनाकर जहां जगदी जाती है, वहां जगदी के साथ चलते हैं. जगदी के कार्यक्रमों की शुरुआत से लेकर समापन तक की जिम्मेदारी कमेटी के लोगों की होती है. नौज्यूला के पंचों की उक्त कमेटी जगदी की डोली, जगदी के बाकी सहित अन्य प्रतिष्ठित बाकियों सहित जात एवं अन्य कार्यक्रमों की सुनिश्चत समापन हेतुमुख्य आधार स्तंभ है. इसीलिए कमेटी में समिति के उच्च पदों पर नौज्यूला के प्रतिष्ठित या सयाणे जैसे व्यक्तित्व ही आसीन होते थे और इनका मकसद जगदी जात सहित सभी कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न करना ही होता था.

तांत्रिक का दुस्साहस

बुजुर्ग जनों से जब जगदी के विषय में हमने बातें शुरू कीं तो जगदी से जुड़े विभिन्न प्रसंग सामने आए. बताते हैं कि एक समय किन्हीं अपरिहार्य कारणों से जगदी की चोरी हो गई थी. जगदी स्नान हेतु बाड़ाहाट उत्तरकाशी गई थी. वहां से जब जगदी स्नान कर वापस लौटी तो भौंणा में यह तय हुआ कि जगदी अपनी चोरी का पता खुद लगाएगी. पंचों ने इस चोरी को जगदी के संज्ञान में डाला और जगदी सेे अपने चुराए गए सामान को वापस पाने का आह्वïान किया. उधर, जहां अंथवालगांव में कथित तौर पर यह सामान रखा गया था उस घर में पंचों के इस निर्णय की भनक लग कर हड़कम्प मच गया. बताते हैं कि इस दौर में अंथवालगांव निवासी एक ढोल बाधक तंत्र-मंत्र विद्या का ज्ञाता था, इस चोरी के इल्जाम से बचने के लिए वह परिवार इस मंत्र-तंत्र वाले के पास गया और संकट की इस घड़ी में अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की. इस ढोल बाधक ने उक्त व्यक्ति को रक्षा का आश्वासन दिया और बात को गोपनीय रखने की सलाह दी. बताते हैं फिर जैसे ही भौंणा से जगदी की डोली तय समयानुसार अंथवालगांव की और बढ़ी जगदी पर दिवांश (अवतरण) ऊफान पर था. जैसे-जैसे जगदी अंथवालगांव की ओर बढ़ी, तब लोगों में यह उत्सुकता और भी बढ़ गई कि जगदी किस घर में चोरी का सामान रखे होने का इशारा करती है. किंतु बताते हैं जैसे ही डोली अंथवालगांव पहुंची वैसे ही वह तांत्रिक ढोलवादक जगदी के आदर के लिए डोली की अगवानी करने लगा. ढोलवादक के मंत्रों के कारण जैसे ही जगदी आगे बढ़ी, जगदी के कपड़े उतर गए. इस घटना से पंचों में सन्नाटा फैल गया और अफरातफरी के बीच जगदी की चोरी का खुलासा नहीं हो सका.फिर बताते हैं कि उस दिन के बाद यह तांत्रिक एक दिन भी अंथवालगांव नहीं टिका और यहां से हमेशा के लिए रफ्फूचक्कर हो गया. खोजबीन से पता चला कि इस वादक के वंशज चमोली जिले के नीती-माणा में हैं, जहां आज भी जगदी के अभिशाप को भुगत रहे हैं.

जब विशेष दर्शन व्यवस्था के खिलाफ हुई आवाज बुलंद

...हर १२ वर्ष के अंतराल पर एक बार जगदी का होम (यज्ञ) होता है. इस होम में जैसा-जैसा समय बदला कई व्यवस्थाएं भी बदलीं. आज यद्यपि जगदी की सक्षम कमेटी समयानुकूल निर्णय लेती है, किंतु कहते हैं एक दौर ऐसा भी था जब यहां के कुछ खास लोगों को राजा द्वारा विशेष अधिकार दिये गये थे. यहां इस संबंध में एक ७५ वर्षीय वृद्ध बुद्धिजीवी बताते हैं कि जब नारायण में होम होता था तो चांजी के 'रौतोंÓ का उस दौर में काफी बोलबाला था. होम के दौरान यह लोग जब नारायण में आते थे तो इनकी रानियों के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था की जाती थी. आज की बात करें तो जैसे कही प्रसिद्ध मंदिरों में अतिविशिष्ट लोगों के लिए दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था होती है, वैसे ही उस दौर में चांजी के 'रौतोंÓ (रावत) के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था थी. लेकिन कहते हैं इस प्रथा का विद्रोह हुआ. यहां इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठीं. कहते हैं चांजी के रौतों को दिए जाने वाले विशेष तव्वजो के खिलाफ भौंणा के श्री पंचम सिंह रावत जी ने पहली आवाज उठाई और जगदी के होम में समानता की व्यवस्था लागू करवाई.

Friday, June 18, 2010

कैंतुरा महरों के कंधों पर है जिम्मेदारी

नौज्यूला की जगदी जात हो या फिर अन्य जगदी से जुड़ी प्रमुख यात्राएं. डोली को कंधों पर उठाने की जिम्मेदारी कैंतुरा महर लोगों पर होती है. जगदी के मैती होने के नाते मायके वाले जगदी को अपने कंधों पर लेके चलते हैं. महरगांव जगदी का मायका माना जाता है, यही कारण है कि जब होम वाले वर्ष जगदी क्षेत्र भ्रमण के लिए निकलती है तो महरगांव के भंडार में प्रमुख पड़ाव होता है. जगदी की चमत्कारी शक्ति के फलस्वरूप पथरीले गांव के रास्ते और बर्फ की शिलाओं पर भी नंगे पैर चलते डोलीधारक मैतियों को किसी प्रकार के कष्ट का अहसास नहीं होता है. महरगांव के भीमसिंह कैंतुरा, मदनसिंह कैंतुरा, पूर्णसिंह कैंतुरा जगदी की डोली को अपनी जिम्मेदारीपूर्ण सेवाएं देने वाले उल्लेखनीय नाम हैं.

फिर नहीं हुई मुलाकात...

एक बार की बात है, जब जगदी की सारी बहनें बाड़ाहाट स्नान के लिए गई थीं. मेला चल रहा था. स्नान आदि के बाद सारी डोलियां नाच रही थीं. नाचते-नाचते हिंदाव की जगदी का छत्तर अखोड़ी वाली जगदी से टकरा गया. कहते हैं हिंदाव की जगदी का छत्तर अखोड़ी की जगदी के आंख में लग गया. हिंदाव की जगदी की टक्कर से अखोड़ी वाली जगदी की आंख चोटिल हो गई. दंतकथा एवं भ्रांतियां हैं कि तब अखोड़ी वाली देवी ने जगदी को खूब खरी-खोटी सुनाई और अगली बार इस घटना का बदला लेने की चेतावनी दी. बताते हैं तब से लेकर आज तक अखोड़ी वाली जगदी और हिंदाव की जगदी का मिलन नहीं हुआ.

मोती वंश के हैं कमेटी के ढोल वादक

जगदी जात के संचालन या जगदी से जुड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए नौज्यूला के पंचों की कमेटी में ढोल-दमाऊं वादक बतौर सदस्य शामिल हैं. अन्य सदस्यों की तरह ही जगदी के ढोल-दमाऊं वादक सदस्य शुरू से आखिरी तक जगदी की अगवानी करते हैं. लोगों के घरों में भ्रमण आदि के दौरान जगदी के बाकी, अन्य देवी-देवताओं के बाकियों के साथ-साथ इन वादकों को भी भरपूर सम्मान मिलता है. बताते हैं कि जगदी की जात के शुरुआत में नौज्यूला के प्रत्येक थोक से ढोल वादक जगदी जात में शिरकत करते थे, लेकिन किन्ही अपरिहार्य कारणों से निपटने पंचों ने ढोल एवं दमाऊं वादकों को कमेटी के सदस्य के तौर पर दो लोगों को शामिल करने का निर्णय लिया. यह नौज्यूला के पंचों की दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि समय के साथ बदले सामाजिक-आर्थिक परिवेश के चलते आज इनकी अति आवश्यकता महसूस की जा रही है. जगदी की जात या अन्य जगदी के कार्यक्रमों में घटती ढोलसंख्या के लिहाज से कमेटी के उक्त सदस्यों पर और भी जिम्मेदारी बढ़ी है. कमेटी के ढोल-दमाऊं वादक सदस्य के तौर पर पंगरिया के मोती वंश के स्व. गुलजारीलाल जी एवं अंथवालगांव के बिंद्रू जी के आगे की पीढिय़ां उल्लेखनीय रही हैं और वर्तमान में उनके सुपुत्र श्री जियालाल एवं मनोहरीलाल अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे हैं.

स्मरणीय है मयाली कंकण की यात्रा

गदी के उत्पत्ति स्थल मयाली कंकण के बारे में बुजुर्गों से सुना था. जब सुने हुए किसी धार्मिक स्थल का जीवन से प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है, तो एक सुखद अनुभूति स्वाभाविक है. किसी भी जगदी भक्त के लिए मयाली कंकण पहुंचना जीवन का अतिमहत्वपूर्ण सुखद छण है. परिजनों की जुबानी इस स्थल का वर्णन सुना था. हां, यहां पहुंचना कठिन जरूर है. मां जगदी की मयाली कंकण यात्रा में जब हम लोग नौज्यूला से चले तो लगभग ५०० श्रद्धालू मयाली कंकण के लिए जगदी के साथ निकले. जगदी का बाकी श्री रघुबीर सिंह नेगी, तत्कालीन पुजारी श्री कमलनयन थपलियाल जी, जगदी समिति अध्यक्ष श्री रघुबीर सिंह रावत एवं जगदी समिति के सदस्य श्री सज्जन सिंह रावत आदि सम्मानित सदस्यों के नेतृत्व में यह यात्रा हुई. अंथवालगांव से जगदी शिलासौड़ लाई गई और रात को पूजा-अर्चना के बाद सुबह होते ही मयाली कंकण यात्रा का प्रस्थान हुआ. हिंदाव से तिमुण्डा, होते हुए इस कठिन यात्रा में लोग हर्षोल्लास के साथ पहाड़ की पगडंडियों पर कदम बढ़ाते रात्रि विश्राम के लिए पंवालीकांठा पहुंचे. यहां जाकर लोग रास्ते चलते-चलते काफी थक गए थे. लगातार पहाड़ों पर यात्रा करना मुश्किल कार्य होता है, किंतु रात में पंवालीकांठा में श्री भगवान सिंह ठेकेदार जी की तरफ से भोजन व्यवस्था की गई थी. रात को यहीं रुके, यहां रातभर पूजा-पाठ हुआ और फिर दूसरी सुबह यात्रा अगले पड़ाव की ओर बढ़ी. पंवालीकांठा के बाद एक तरफ मखमली बुग्यालों की रमणिकता अपनी ओर आकर्षित करती है, तो दूसरी ओर यात्री की शारीरिक क्षमता जवाब देने लगती है. पंवालीकांठा तक जाने के बाद कई लोग थक के चूर हो गए थे, लेकिन श्रद्धालू मयाली कंकण जाने के दृढ़ इरादे के साथ आगे बढ़ रहे थे. कुराणगांव के नगेला के बाकी जी तो उम्रदराज होने के कारण पंवाली में रुक गए थे. यहां पर हम लोग आगे बढ़े किंतु बाकी जी यहीं रहे, यहां फिर भिलंग के पशु पलकों ने बाकी जी की सेवा की और अपने -न्योते-पत्रे पूछे. पंवालीकांठा के बाद राजबोंगा होते हुए ताली की खड़ी धार पर चलना वाकई रोंगटे खड़े करने वाला था. काफी चलने के बाद अबिंडा आया. अबिंडा से त्रिजुगीनारायण का रास्ता जाता है. यहां से लगभग २०० यात्री थक कर त्रिजुगीनारायण के रास्ते वापस लौट चुके थे. यहां से हम प्यटारा पहुंचे. प्यटारा में कुराणगांव के बकरी-पशुधन के प्रसिद्ध उद्यमी श्री रघुबीर सिंह जी की तरफ से भोजन व्यवस्था की गई थी. रात्रि विश्राम यहीं हुआ. प्यटारा में रात खुले आसमान के नीचे बुग्यालों की खूबसूरत धरती पर गुजारी. यहां रातभर रहने के बाद तीसरे दिन मयाली कंकण पहुंचना होता है. प्यटारा के बाद सुबह मयाली कंकण के लिए प्रस्थान किया. यहां से अंदाजन 8-9 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद ल्वारगला आता है. यहां पर फिर सभी यात्रियों की गिनती हुई. 300 श्रद्धालू यात्रा में बने हुए थे. यहां पर जगदी ने सभी श्रद्धालुओं की रखवाली की. यहां से आगे ऐसा कोई बन-बना रास्ता नहीं है. अंदाजे के बल पर आगे बढ़ते हैं. इस रास्ते का पता भी कुराणगांव के श्री रघुबीर सिंह जी के बकरी पालकों ने लगाया था. अंदाज के बल पर बुग्यालों, रंग-बिरंगे फूलों से अच्छादित पर्वत चोटियों पर कदम बढ़ाना जितना रोमांचक है उतना ही मुश्किल भरा भी. अंदर से शरीर का पसीना और बाहर से बारिश की रिमझिम फुहारें, शरीर को तरबतर करने वाली होती हैं. जगदी की चमत्कारिक शक्ति, प्रकृति का अद्भुत नाजारा, बर्फ की शिलाओं पर चलते-चलते हिमालय की गोद में पहुंच जाना मानो शरीर की थकान को भूल कर आगे बढऩे का बल देता है. प्यटारा से लगभग १०-१२ किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद मयाली कंकण आता है. मयाली कंकण में केवल ढोल को जगदी के साथ लेके जाते हैं. दमाऊं को यहीं रास्ते में रख देते हैं. भ्रांतियां हैं कि मयाली कंकण में दमाऊं लेके नहीं जाते. मयाली कंकण में जगदी का पत्थर के चबूतरे पर छोटा सा मंदिर पत्थरों से बनाया गया है. इस स्थल पर पहुंचने का रास्ता नहीं है, यह ऊपर से थोड़ा गहराई पर है. अधिकांश लोग लगभग २५-३० फीट फिसलन वाली भीगी घास में फिसलते हुए ही मंदिर स्थल पर पहुंचे. फिर मंदिर में रात्रि जात यानी पूजा-पाठ हुआ. यहां चारों पहर पूजा के बाद सुबह यज्ञ/हवन कर यहां से घर के लिए प्रस्थान किया. अब रास्ता चढ़ता-उतरता था, किंतु यहां से सीधा रात्रि विश्राम के लिए पंवालीकांठा आए. फिर दूसरे दिन सुबह पंवाली से आकर जगदी की विधिवत पूजा के बाद यात्रा की समाप्ति हुई.

और अबिंडा से ही वापस हो गए थे नौजूला के यात्री

ठ्ठ अबिंडा अपने नाम के अनुरूप कार्यसिद्धि में बाधक होने का परिचायक है. बताते हैं एक बार नौज्यूला के पंचों ने जगदी को मयाली कंकण ले जाने का निर्णय लिया. किंतु इस स्थान तक पहुंच जाने के बाद लाख कोशिशों के बाद भी लोगों को मयाली कंकण का रास्ता नहीं मिला. अंतत: लोगों को यहां से वापस लौटना पड़ा, जिससे यह स्थान अबिंडा के नाम से प्रचलित हुआ....और आंखें खुल गईं ठ्ठ बताते हैं मयाली कंकण यात्रा के दौरान भौंणा के घंडियाल के बाकी श्री मोर सिंह जी सभी श्रद्धालुओं में काफी वृद्ध व्यक्ति थे. श्री मोर सिंह जी की नयन दृष्टि भी कमजोर थी, किंतु जगदी के चमत्कार से जहां मयाली कंकण मार्ग में इनकी आंखें खुल गईं, वहीं पूरी यात्रा में उत्साहपूर्वक डटे रहे.

आसपास की पट्टिïयों में भी आस्था और श्रद्धा के साथ लिया जाता है जगदी का नाम

हिंदाव की आराध्य देवी जगदी का पास-पड़ोस की पट्टिïयों में गहरा प्रभाव है और देवी जगदी के प्रति अटूट आस्था है. अपने पूर्वजों की कही इन्हीं बातों का स्मरण करा रहे हैं राजस्थान सूचना केंद्र, मंबई में कार्यरत श्री बीरेंद्र सिंह बिन्दवाल.नौज्यूला की जगदी मां की गाथा के बारे में हमारे पूर्वज कहते थे कि मां जगदी प्रति वर्ष अंथवालगांव से पूस की 15 गते बाहर आती है. जगदी की इसी भव्य यात्रा को देखने उनके हजारों भक्तगणों का तांता लग जाता है. कहते हैं भक्तों का मन तब और भी उत्साहित हो जाता है, जब नौज्यूला के दर्जनों ढोल-दमाऊं एवं भाणा-भंकोरों की आकाश को मात देने वाली मृदंग आवाज के बीच भक्तों का काफिला पंगरिया के चौक से आगे बढ़ता है. जगदी को चढ़ावे के रूप में आने वाले न्यौजा-निशाणों की मनोहारी छटा यात्रा में रंगत घोल देती है. जगदी अंथवालगांव के नीचे भव्य मंदिर में नाचती है वह दृश्य भी देखने लायक होता है. उसके बाद जगदी अपने आरंभ्य देव पंगरिया आती है और फिर शिलासौड़ के लिए अपने अगवानी वीर क्षेत्रपाल, नागराजा, घण्डियाल, नगेला आदि की सहित आगे बढ़ती है. इस दौरान अंथवालगांव, कुराणगांव सहित शिलासौड़ तक जो भी गांव रास्ते में आते हैं, लोग पूजा-पिठाईं देकर जगदी के दर्शन करते हैं. जगदी का पशुआ भक्तों को जसीले 'ज्योंदालÓ देता है, जिसके फलस्वरूप भक्त अपने जीवन में सुख-शांति परते हैं. रात्रि के समय जगदी अपने अंतिम पड़ाव शिलासौड़ में जाती है, जहां जगदी का पत्थर के ऊपर मंदिर बना है. यहां पर हजारों दिशा-धियाणी अगले दिन मेले में आती हैं. अंत में मां जगदी क्षेत्र की पास-पड़ोस की पट्टिïयों के हर घर-परिवार की रक्षा करना यही मेरी विनती है.-श्री वीरेन्दर सिंह बिन्दवाल,मूल निवास : ग्राम-पौंठी चौंरालगांव, पट्टïी- सिलगढ़जिला-रुद्रप्रयाग.वर्तमान पता : राजस्थान सूचना केंद्र, कांसाब्लांका अपार्टमेंट, कफ परेड, मुंबई.

बगडवालों के यहां विराजती है भिलंग की जगदी मां


उत्तराखंड युग-युगांतर से भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थली, तपस्थली और शांति प्रदाता रही है। हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं, कल कल करती नदियां, मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य, तीर्थस्थल, सीढ़ीनूमा खेत, छोटे-छोटे गांव मानव मन को अपनी ओर आकर्षित कर देते हैं। प्रत्येक गांव में शिवालय व विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर अपने आप में देवभूमि होने का प्रमाण है। उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में इन देवस्थलों पर कौथिग (मेले) लगते हैं. बड़े ही उत्साह के साथ लोग श्रद्धाभाव से अपने ईष्टों का पूजन करते हैं व उस मेले में शामिल होते हैं. मां जगत जननी भगवती पार्वती तो उत्तराखंड की आराध्य देवी कुलदेवी हैं. मां शक्ति की आराधना तो उत्तराखंड के घर-घर में की जाती है. उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद के अंतर्गत पट्टïी भिलंग में भी मां जगदम्बा की जात दी जाती है. संपूर्ण भिलंग पट्टïी की ईष्ट देवी है मां जगदी (जगदम्बा). प्रत्येक वर्ष घुत्तु के ऊपर बुगेलाधार में जगदी का उत्सव मनाया जाता है. इस मेले में भिलंग पट्टïी के चंदला, देवंज, महरगांव, राणी डांग, घणाती, चडोली, कंडार गांव, कोड़ी, रैतगांव, सटियाला, दरजियाणा, कोट, ऋषिधार, मल्ला गवांणा, तल्ला गवांणा, टमोटेणा, खाल, पुजारगांव, मेन्डू, सेंदवाल गांव, भाटगांव, गेंवालकुड़ा, कैलबागी, नगर कोट्ïयाणा, कन्याज इत्यादि गांव शामिल होते हैं. बुगेलाधार में मां जगदी का दिव्य मंदिर स्थापित है, इसके साथ-साथ नागेंद्र देवता, साधु की कुटिया व अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं. संपूर्ण भिलंग पट्टïी में ज्येष्ठ माह में प्रत्येक गांव जगदी की जात देता है और उसके बाद सभी गांवोंं की पंचायत बुलाकर एक तिथि निर्धारित की जाती है और उस दिन विशाल रूप से यह उत्सव मनाया जाता है. मां जगदी की पूजा अर्चना चंदला गांव के पैन्यूली जाति के ब्राह्मïणों द्वारा होती है. देवी जात के पहले दिन मेळाग- फॉन्टा (चंदा) जमा करके देवी के मूल स्थान 'टाटगÓ स्थान पर जाते हैं. टाटग एक स्थान है, जो कि बिशोन का डांडा (पर्वत) के नीचे है. टाटग स्थान पर एक शिला है, जिसे जगदी का मूल स्थान माना गया है. वहां रातभर उस शिला की पूजा होती है. रात्रभर सभी श्रद्धालू जागरण करते हैं. बिशोन का डांडा पंवाली बुग्याल से शुरू होता है और कुंणी, मंजेठी, जान्द्रीय सौड़ तक फैला है, यहां वर्षभर बारिस होती है. बिशोन डांडा की एक ओर बांगर व लस्या पट्टिïयां हैं तथा दूसरी ओर भिलंग व दोणी हिंदाव पट्टïी है. इस घनघोर जंगल में मां जगदी आछरियों से मिलने जाती है तथा रातभर पूजापाठ के बाद टाट्ग स्थान से दूसरे दिन बुगेलाधार पहुंचती है. बुगेलाधार पहुंचने पर उस दिन इस स्थान पर बहुत बड़ा मेला (कौथिग) लगता है. इस कौथिग को संपूर्ण भिलंग पट्टïी के लोग हर्षोउल्हास के साथ मनाते हैं. उस दिन बुगेलाधार में एक ओर जहां बाजार सजा रहता है, वहीं दूसरी ओर ढोल-दमाऊं की थाप पर लोग पांडव नृत्य करते हैं. दूर-दूर से ध्याणे (महिलाएं) आकर एक-दूसरे के गले लगती हैं और शृंगार की विभिन्न वस्तुएं खरीदती हैं. लोग देवी की डोली को दिनभर कंधे पर उठाकर नचाते हैं. संपूर्ण पट्टïी के लोग अपना न्यूता डालते हैं, देवी का पसुवा के माध्यम से उनका संदेश सुनते हैं. तत्पश्चात सायंकाल को देवी की डोली तल्ला गवाणा को प्रस्थान करती है, जहां वह बगडवाल लोगों के स्थान पर विराजती है. पट्टïी के जिस गांव में पूजा होती है, वे इस डोली को वहां से सम्मान से ले जाते हैं तथा उसकी पूजा अर्चना करते हैं. बुगेलाधार में स्थित यह मंदिर जगदंबा सर्व सेवा समिति, मुंबई द्वारा बनाया गया है. यह समिति सन्ï १९६५ में बनी थी तथा आज से २०-२२ वर्ष पहले यह मंदिर बनाया गया था. बिनाशकारी भूकंप आने से मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. परंतु मां जगदी के आशीर्वाद से मुंबई की समिति ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया. इसके साथ-साथ जगदम्बा सर्व सेवा समिति, मुंबई ने नागेंद्र देवता का मंदिर व एक भव्य जगशाला का भी निर्माण करवाया. मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र धन धान्य से परिपूर्ण है. देवस्थानों के साथ-साथ यह क्षेत्र रमणिक भी है. कारण यहां से पंवाली कांठा, त्रिजुगीनारायण, केदारनाथ पैदल मार्ग, खतलिंग ग्लेशियर, सहस्त्रताल, गंगी, कल्याणी जैसे पवित्र व मनमोहक स्थल भी हैं. आने वाले समय से तीर्थाटन व पर्यटन के क्षेत्र में यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र उत्तराखंड का पांचवां धाम होगा. जय जगदी मां!(लेखक हिमशैल, मुंबई के प्रधान संपादक हैं)

उत्तराखंड एक झलक

देश का सत्ताइसवां राज्यराज्य का गठन : 9 नवंबर 2000कुल क्षेत्रफल : 53,483 वर्ग कि.मी.कुल वन क्षेत्र : 35,394 वर्ग कि.मी.राजधानी : देहरादूनकुल जनसंख्या : 84,89,349पुरुष : 43,25,924महिलाएं : 41,63,425जनसंख्या घनत्व : 159 प्रति वर्ग कि.मी.लिंग अनुपात : (महिला पुरुष) 962:1000जनसंख्या टिहरी गढ़वाल : 604,747सीमाएं :अंतर्राष्ट्रीय : चीन, नेपालराष्ट्रीय : उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेशउच्च न्यायालय : नैनीतालप्रशासनिक इकाईमंडल 02कुल जिले 13तहसील 78विकासखंड 95न्याय पंचायत 670ग्राम पंचायत 7227कुल ग्राम 16826शहरी इकाइयां 86नगर निगम 01नगर पंचायत 31छावनी परिषद 09

नौज्यूला का परिचय

उत्तराखंड राज्य के जनपद टिहरी गढ़वाल के भिलंगना विकास खंड की हिंदाव पट्टी में नौज्यूला स्थिति है. नौज्यूला के अंतर्गत भौंणा, पंगरियाणा, वडियार, सरपोली, अंथवालगांव वर्तमान ग्राम सभाएं हैं. जबकि छोटे-छोटे खोलों या गांव के नाम से अन्य कई गांव हैं. जैसे पंगरियाणा में ही पलियालगांव, महरगांव, अध्वाणगांव, लैणी, संतवाणगांव, भेटियालगांव, मैधवाणगांव, रतगला, नखुंड, डारसिल आदि खोले हैं. उधर बडियार, पंगरिया, बगर, मालगांव सरपोली, चटोली, खणदू, कुराणगांव, अंथवालगांव, कुलणा-समनौ जैसे प्रमुख गांव हैं.आर्थिक स्थिति क्षेत्र में रोजगार के साधनों का अभाव है, परंतु क्षेत्र की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है. क्षेत्र के अधिकांश लोग शहरों की ओर रुख करते हैं और दिल्ली-बम्बई जैसे महानगरों में विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे हैं. हाल के कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है, जिसका पूरा श्रेय यहां के उन नौजवान युवाओं को जाता है, जिन्होंने रोजगार के लिए देश की सीमाएं लांगी हैं और सात समंदर पार जाकर डॉलर, येन, दरिहाम्स, रूबल आदि मुद्राओं के बल पर इस क्षेत्र को समृद्ध बनाने के लिए परिश्रम किया है. क्षेत्र के अधिकांश लोग विदेश के रेस्तरांओं में लजीज व्यंजन बनाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं. विदेशों में अपने कठिन परिश्रम के बल पर क्षेत्र की आर्थिकी को सबल करने में इस वर्ग का विशेष योगदान है. सरकारी सेवाएं नौज्यूला के लोगों का सरकारी सेवाओं के प्रति रुझान तत्कालीन व्यवस्थाओं के अनुरूप कम रहा है, परिणामस्वरूप क्षेत्र में सरकारी सेवा में अहोदेदार पदों पर तस्वीर धुंधली है. किंतु शिक्षा क्षेत्र में कई बुद्धिजीवियों ने इस कमी को पूरा किया है और उच्च पदों पर कार्यरत हैं. यहां के प्रमुख राजकीय इंटर कालेजों को ही लें तो राजकीय इंटर कालेज मथकुड़ी सैंण में श्री नारायणदत्त थपलियाल जी प्रधानाचार्य के पद पर सुशोभित हैं, तो दूसरे राजकीय इंटर कालेज कठूड़ में भी श्री करणसिंह रावत जी प्रधानाचार्य के पद पर विराजमान हैं. वहीं निकटवर्ती राजकीय इंटर कालेज अखोड़ी में भी श्री शिवशरण थपलियाल जी प्रधानाचार्य के पद की शोभा बढ़ा रहे हैं. साथ ही कई अन्य बुद्धिजीवी प्रवक्ता एवं अध्यापक-मुख्याध्यापक के रूप में क्षेत्र का नाम रौशन कर रहे हैं. यद्यपि अस्पताल, बैंक एवं अन्य सरकारी सेवाओं में भी नौज्यूला के लोग उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, लेकिन अभी यह सीमित है. उत्तराखंड की पत्रकारिता जगत में श्री विजयराम गोदियाल जी का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है. शिक्षा क्षेत्र में शिक्षा का अनुपात सामान्य है. यहां अधिकांश युवावर्ग १०वीं एवं १२वीं तक पढ़ते हैं. तकनीकी शिक्षा का अभाव और उच्चशिक्षा के प्रति लोगों के रुझान की कमी है. एक अनुमान के मुताबिक १२वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले १०० छात्रों में से मात्र ५-६ छात्र ही उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होते हैं. जबकि राज्य स्तर पर होने वाली विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में यहां के छात्र-छात्राओं के शामिल होने का अनुपात और भी चिंताजनक है. विदेशगमन के प्रति यहां के छात्रों की रुचि ज्यादा है और मंजिल पाने की चाह में ऐसे युवा विभिन्न महानगरों में परिश्रम कर रहे हैं. नौज्यूला में स्कूल-कालेजों की कमी नहीं है, लेकिन शिक्षा का स्तर राज्य के अन्य पिछड़े क्षेत्रों जैसा ही है. हां संतोष करने की यह बात जरूर है कि हिंदाव के बाहर देहरादून या फिर शहर एवं महानगरों में रहने वाले कई नौज्यूला के प्रवासियों की युवा पीढ़ी आधुनिक तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रही है. उधर, नौज्यूला में ही बच्चों को बेहतर बुनियादी शिक्षा देने के मिशन पर कुछ लोग कार्य कर रहे हैं. मथकुड़ी सैण में न्यू मॉडर्न स्कूल के संचालक श्री प्रीतम सिंह रावत एवं श्री मोनसिंह नेगी के अनुसार उनका प्रयास बच्चों की पढ़ाई की खातिर शहरों की ओर पलायन कर रहे परिवारों को गांव में ही शहरों जैसी बुनियादी शिक्षा मुहैया कराना है. श्री रावत और नेगी के अनुसार उनके प्रयास से अब तक केवल बच्चों की शिक्षा के लिए पलायन करने वाले दर्जनों परिवार इरादा बदल चुके हैं.प्रमुख संस्थानों में उपस्थिति नौज्यूला के प्रवासियों ने गांव के खेत खलियान छोड़ महानगरों में संघर्ष कर अपनी जीवटता का परिचय दिया है. चाहे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया हो या फिर उद्योग जगत से जुड़े अन्य ख्यातिलब्ध संस्थान, यहां के लोग विभिन्न उच्च पदों पर आसीन हैं. बेंगलूर, दिल्ली, मुंबई सहित अन्य शहरों में भी नौज्यूला के लोग प्रबंधन के क्षेत्र में उच्च पदों पर काबिज हो रहे हैं. श्री शंकरसिंह रावत जी जैसे व्यक्तित्व निजी संस्थान में वाइस प्रेसीडेंट के पद पर कार्यरत हैं, जो नौज्यूलावासियों को गौरवान्वित करता है.उद्योग जगत उद्योग जगत में सफल उद्योगपतियों की कमी है, किंतु कई प्रवासी इस कमी को पूरा कर रहे हैं. मुंबई में प्रमुख उद्योगपति शंकर सिंह कुंवर, भीम सिंह कैंतुरा जैसे नौज्यूला के गौरव हैं, जिन्होंने अपनी लगन एवं मेहनत के बल पर एक खास मुकाम तय किया है. उधर जयसिंह कुंवर, शिवसिंह कुंवर ने भी इस क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया है. फिल्म एवं कला जगत में नौज्यूला की उपस्थितिफिल्म एवं कला जगत में नौज्यूला के लोगों ने दस्तक दी है, यद्दपि यह दस्तक सीमित है किंतु आने वाले समय में इस क्षेत्र में दरवाजे खुलेंगे उम्मीद की जानी चाहिए. प्रसिद्ध गढ़वाली फिल्म 'घरजवैंÓ में खलनायक के तौर पर सिल्वर सक्रीन पर चतरू के किरदार में भीमसिंह रावत (लैणी) ने अभिनय जगत में उपस्थिति दर्ज कराई, वहीं वर्तमान में बंगाली फिल्मों से अभिनय की शुरुआत करने वाले प्रमुख गढ़वाली अभिनेता ज्योति राठौर गढ़वाली फिल्मों के प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हैं. राठौर पिछले लंबे समय से बड़े पर्दे के माध्यम से लोगों के बीच हैं. निर्माता माधवभट्टï की अब तक की सबसे बड़े बजट की गढ़वाली फिल्म ''सिपैंजीÓÓ में ज्योति राठौर प्रमुख अभिनेता हैं, जो बहुत जल्दी धूम मचाने आम लोगों के सामने आने वाली है. यही नहीं ज्योति राठौर ने अभिनय के साथ ही फिल्मी कैमरों को नौज्यूला की तरफ भी मोड़ा है और इस फिल्म की शूटिंग नौज्यूला के कई खूबसूरत लोकेशनों पर की गई है.ज्योति राठौर ''मेरी गंगा होली त मैमु आलीÓÓ में बतौर निर्देशक काम कर चुके हैं, जिसमें कुराणगांव के मूल निवासी श्री शंकर सिंह कुंवर जी एवं श्री जयसिंह कुंवर ने गढ़वाली फिल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आजमाए थे. ''मेरी गंगा होली त मैमु आलीÓÓ के निर्माता श्री कुंवर द्वय का गढ़वाली फिल्मों के निर्माता के रूप में फिल्मोद्योग में उपस्थिति दर्ज कराने से नौज्यूला का मान बढ़ा है. फिल्म एवं कला जगत में चंदर सिंह कैंतुरा 'शैलÓ भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे हैं, हाल ही राकेशचंद्र भट्टï की गढ़वाली फिल्म 'ब्योÓ में बतौर कार्यकारी निर्माता के तौर पर चंदर सिंह कैंतुरा की सक्रिय भागीदारी रही है.आने वाले समय में अभिनेता ज्योति राठौर और पत्रकार गोविंदलाल आर्य माधोसिंह भंडारी जैसे लोकप्रिय नृत्य नाटक का सम्पूर्ण गढ़वाल क्षेत्र में मंचन करने वाले हैं, जिस पर युद्धस्तर पर कार्य चल रहा है. माधोसिंह भंडारी का मंचन आधुनिक तकनीकी के संयोजन में उसके मूल स्वरूप में प्रस्तुत किए जाने की योजना पर कार्य चल रहा है. पुरानी संस्कृति को यथास्वरूप में प्रस्तुत करने के इरादे से यह टीम काम कर रही है, जिसमें पारंपरिक-सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने का प्रमुख उद्देश्य है.सरकारी योजनाओं की स्थिति क्षेत्र में भौंणा, पंगरियाणा, बडियार, सरपोली, अंथवालगांव जैसी बड़ी जनसंख्या वाली ग्रामसभाएं हैं. सरकारी योजनाओं की बात की जाए तो यहां का विकास सरकारी मुलाजिमों के निर्णयों पर टिका है. ग्रामसभाओं की ही बात करें तो ब्लॉक स्तर पर कुछ भ्रष्ट कर्मियों की सांठ-गांठ से यहां का विकास प्रधान के सचिव स्तरीय कर्मी पंचायत मंत्री के रहमोकरम पर टिका है. विकास योजनाओं के प्रस्ताव मिटिंगों में बनते हैं और सरकारी अलमारियों में दम तोड़ देते हैं. नौज्यूला के संपर्क मार्गों को ही उदाहरण के तौर पर लें तो विकास की किरण इस क्षेत्र से कोसों दूर प्रतीत होती है. पीठ पर ५० किलो के बोझ लेकर अपनी मंजिल तय करती किसी महिला को मोबाइल पर दूर-देश में अपने परिजनों से बातें करता देख जहां संचार क्रांति का अहसास होता है, वहीं रात के घनघोर अंधेरे को चीरते लो बोल्टेज परजलते बिजली के बॉल्ब राज्य सरकार के इरादों को दर्शाते हैं. किंतु ब्लॉक स्तरीय कार्यों में दलालों की ऐसी फौज खड़ी है, जो सरकारी धन पर आंखें गाढ़े खड़ी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि नवनिर्वाचित समस्त प्रतिनिधि क्षेत्र के विकास को नया आयाम देंगे. साथ ही जनता में भी विकास कार्यों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और सूचना अधिकार का अधिकाधिक प्रयोग कर विकासकार्यों में पारदर्शिता बढ़ेगी.स्वास्थ्य सुविधाएंनौज्यूला में स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव है. यहां एकमात्र राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय पंगरियाणा है, जहां अपने लम्बे अनुभव, कुशल सेवाभाव के चलते श्री चिंतामणि अंथवाल जी नौज्यूलावासियों को अपनी चिकित्सकीय सेवाएं दे रहे हैं. चिकित्सालय में डॉक्टर की तैनाती है, किंतु इतने बड़े क्षेत्र में यह नाकाफी है. लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते किसी भी आपातकालीन स्थिति में घनसाली से पहले कोई व्यवस्था नहीं है. यद्यपि कुछ निजी चिकित्सक भी ग्रामीणों की सेवा में संलग्र हैं.

जब 2008 के चुनाव में अखबारों की सुर्खियों में रहा हिंदाव क्षेत्र

ज्यूला के लोगों की अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा राजनीतिक भागीदारी शिथिल रही है. आवश्यक ग्रामसभा प्रधान के अलावा राजनीतिक पटल पर कोई उल्लेखनीय तस्वीर नहीं उकेरी जा सकी है. पंचायती राज व्यवस्था में सत्ता के विकेंद्रीकरण से राजनीति के अवसर बढ़े हैं और राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ी है. उत्तर प्रदेश के दौर में पत्रकार विजयराम गोदियाल ने विधानसभा चुनाव में हुंकार भरी, तो जब 2008 के चुनाव में अखबारों की सुर्खियों में रहा हिंदाव क्षेत्रराज्य निर्माण के बाद श्री सोनसिंह कुंवर ने विधानसभा चुनाव में कूद कर नौज्यूल्या को राजनीतिक पटल पर लाने की कोशिश की. सोनसिंह कुंवर भले सफलता से दूर रहे, लेकिन उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में नौज्यूला से पहला विधानसभा उम्मीदवार बनने का श्रेय तो श्री कुंवर जी को मिलेगा ही. नौज्यूला से श्री कुंवर सिंह कुंवर भी जिला पंचायत में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उधर २००३ में जिला पंचायत की संयुक्त अखोड़ी सीट पर नौज्यूला के श्री शिवचरण नेता जी ने भारी मतों से विजय प्राप्त की. श्री शिवचरण जी को मिले मतों ने तत्कालीन उत्तराखंड जिला पंचायत चुनाव में विशेष रिकॉर्ड बनाया. हाल ही २००८ में संपन्न त्रिस्तरीय चुनाव में नौज्यूला निवासी उम्मीदवार श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य के चुनाव मैदान में उतरने से यह क्षेत्र अखबारों में सुर्खियों में छा गया. यद्दपि इस सीट पर तीन अन्य महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में थीं. किंतु पंगरियाणा निवासी श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य ने जिला पंचायत चुनाव में हिंदाव पट्टïी के राजनीतिक पटल पर जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है. जिला पंचायत चुनाव में हिंदाव सीट पर श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य की दस्तक राज्यभर में चर्चित रही. इतना ही नहीं कई प्रमुख पार्टियों ने श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य के नाम को पार्टी पैनल में नहीं भेजे जाने को लेकर स्थानीय पार्टी नेताओं को जमकर फटकार लगाई, तो कई पार्टियों ने श्रीमती आर्य की संभावित जीत को देखते हुए अपने पार्टी प्रतिनिधियों के माध्यम से श्रीमती आर्य से पार्टी में शामिल होने आमंत्रित किया. जिला पंचायत चुनाव में हिंदाव सीट पर श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य को मिला जनसमर्थन राज्यभर में चर्चा का विषय रहा. अपने प्रभावी जनसंपर्क के कारण श्रीमती आर्य ने कथित भारतीय जनता समर्थित प्रत्याशी को जहां कड़ी टक्कर दी, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के मंसूबों पर पानी फेर लिया. जिला पंचायत की सीट यद्धपि नौज्यूल्या की झोली में नहीं आई, किंतु अल्प समय में ही बुद्धिजीवियों के सहयोग, श्रीमती गोदाम्बरी देवी आर्य के करिश्माई व्यक्तित्व एवं चुनाव रणनीतिकारों के परिश्रम के बल पर ''उत्तराखंड की राजनीति में नौज्यूला की उपस्थितिÓÓ का गहरा अहसास कराया.श्रीमती गोदाम्बरी देवी के राजनीतिक आगाज के साथ ही आने वाले समय में उत्तराखंड की राजनीति में ''नौज्यूला की राजनीतिक शून्यताÓÓ को पाटने एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है. नए परिसीमन के तहत घनसाली विधानसभा क्षेत्र के बदले राजनीतिक समीकरणों के चलते अब इस बात को जाहिर करने में कोई हर्ज नहीं है कि ''नौज्यूलाÓÓ भी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्रबल दावेदार है.ठ्ठठ्ठठ्ठ

Thursday, June 17, 2010

मेरा परिचय

मैं गोविंदलाल आर्य, जनपद टिहरी गढ़वाल उ ाराख ड का मूल निवासी एवं वर्तमान में नवी मुंबई के नवीन पनवेल का रहिवासी हंू. मेरा ज म ०१ जनवरी १९७५ को पंगरिया ाा में हुआ. साथ ही प्राथमिक शिक्षा यहीं की पाठशाला में हुई. पहले गुरु ाी एलमदास जी चांजी गांव हिंदाव के थे. इसके बाद कक्षा ६ से ८ तक की शिक्षा उ"ातर मा यमिक विद्यालय मथकुड़ी सैं ा से हुई, यह विद्यालय आज राजकीय इंटर कालेज बन चुका है. हिंदाव में हाईस्कूल में वि ाान वर्ग से पढ़ाई की सुविधा कहीं नहीं थी इसके लिए निकटतम कालेज रा. इ. का. अखोड़ी था. किंतु जनता उ"ातर मा यमिक विद्यालय कठूड़ में भी ९वीं में पहली बार वि ाान वर्ग की कक्षाएं शुरू होने की तैयारी थी. इस विद्यालय में ९वीं वि ाान वर्ग की कक्षा के हम प्रथम बैच के छा ा थे. १०वीं बोर्ड की परीक्षा का केंद्र उस समय रा.इ.का. अखोड़ी था और इंटर में उस दौरान यहां वि ाान वर्ग की कक्षाएं संचालित होती थीं. मैंने भी १९९० में इंटरमीडिएट की पढ़ाई यहीं से करते हुए १९९२ में कक्षा १२वीं यहां से उ र्ती ा किया. उ"ा शिक्षा के लिए हेमवती नंदन बहुगु ाा गढ़वाल विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ कैंपस टिहरी में १९९३ को दाखिल हुआ. यह पल जीवन के यादगार पलों में एक है, विश्वविद्यालय में दाखिले का पल खास इसलिए भी कि हमारी पूरी पट्टïी से ही उस दौर में बहुत कम लोग उ"ा शिक्षा की ओर कदम बढ़ाते थे.मैंने विवि में प्रवेश लिया एवं ठक्करबापा छा ाावास में भी रहने के लिए व्यवस्था हुई. वि.वि. के साथ ही ठक्करबापा छा ाावास में लगातार एम.ए. तक ५ साल बिताए पल गए वो पल हैं जो हमेशा हर सुबह की तरह ताजे हैं.आ ाम में ाी भवानी भाई जी के सानि य में कठोर अनुशासना मक जीवन आज भी जीवन को सबल प्रदान करता है. सुबह-शाम की प्रार्थनाएं हों या फिर भोजन पूर्व मं ाो"ाार, सब आचार-विचार के साथ जीने के मायने उस दौरान सीखे. भवानी भाई की चर्चा आगे करूंगा, योंकि ऐसे महापुरुषों पर लिखने के अवसर कभी-कभी ही मिलते हैं. साथ ही उस दौरान टिहरी बांध विरोधी आंदोलन, जो कि प्र यात पर्यावर ाविद् ाी सुंदरलाल बहुगु ाा जी द्वारा किया जा रहा था, में 'गंगा को अविरल रहने दो गंगा को अविरल बहने दोÓ में प्रभात फेरियों में हिस्सा लेने के पल हमेशा यादगार हैं.एम.ए. करने के दौरान अपने भाईयों से मिलने मुंबई आया. यूं तो बी.ए. करने के दौरान भी दो बार आया था मुंबई, किंतु तब स्नातक होना मेरे लिए प्राथमिकता थी. एम.ए. करने के दौरान मुंबई आया तो यहां अंग्रेजी अखबारों में विभिन्न कोर्सों के बारे में छपे वि ाापनों ने उ ाराख ड वापस जाने के बजाए कोई कोर्स करने की इच्छा प्रबल हुई. भाई लोगों ने भी कोई कोर्स की बात की. मैं अंग्रेजी अखबार रोज पड़ता और उसमें प्रवेश संबंधी कोर्सों के बारे में देखता. फिर एक दिन के.सी. कालेज चर्चगेट गया और वहां से पर्सनल मैनेजमेंट का फार्म लेकर आया. वहां दाखिला लिया साथ ही मुंबई विद्यापीठ ने भी पहली बार हिंदी प ाकारिता की सं याकालीन कक्षाएं शुरू कीं. मैंने यहां भी प्रवेश लिया और कोर्स शुरू किया.इस दौरान १९९७ में मुंबई से हिंदी दैनिक नवभारत के आने की खबर दोस्तों ने दी. ट्रेन, स्टेशन, शहरों में नवभारत के आने के वि ाापन छाए थे. मेरी इच्छा भी हुई कि मैं भी अखबार वाइन करूं. मैं संस्थान में गया. मैंने साक्षा कार दिया और संपादकीय विभाग में वाइन कर लिया. इस बीच गांव लौटने में देेरी हो गई और मैं मुंबईकर बन गया.
ब्लॉग की दुनिया मे आपका स्वागत

Wednesday, June 16, 2010

जनप्रतिनिधियों से पर्यटन क्षेत्र बनाने की मांग


हिंदाव की जगदम्बा का प्रभाव हिंदाव तक ही सीमित नहीं है. यद्दपि जगदी हिंदाववासियों की आराध्य देवी है मगर आस-पास की पट्टिïयों में भी जगदी को अति प्रचाधारी देवी के नाम से जाना जाता है. यहां की पड़ोसी पïट्टïी ग्यारह गांव हिंदाव, नैलचामी, भिलंग, केमर अर्थात समूचे भिलंगना प्रखंड एवं लस्या, भरदार में जगदी को प्रमुख देवियों में गिना जाता है. जगदी जात के दिन दूर-दूर से लोग यहां देवी दर्शन के लिए आते हैं. साथ ही यहां की अन्य पट्टिïयों में विवाहित महिलाएं भी इस दिन का दिल थाम कर इंतजार करती हैं. जगदी जात के दौरान हिंदाववासियों के घरों में नाते-रिश्तेदारों का तांता लगा रहता है और अपने इस प्रमुख मेले के लिए क्षेत्रवासियों द्वारा अपने रिश्तेदारों/परिचितों को यहां आने का न्यौता दिया जाता है. हाल में आवागमन की सुलभता, संचार एवं प्रसार माध्यमों के चलते जगदी की जात राज्य के अन्य प्रमुख मेलों की तरह प्रसिद्ध हो रही है. उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों के मद्देनजर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की मेले में बढ़-चढ़ कर उपस्थिति मेले को राज्यस्तर पर पहचान दिलाने की ओर अग्रसर है. क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों एवं क्षेत्रीय प्रबुद्ध वर्ग के प्रयासों के चलते उम्मीद की जानी चाहिए कि जगदी की जात क्षेत्रीय सीमाओं को लांगकर राज्य में प्रमुख मेलों में सुमार होगी. दिनोंदिन जिस प्रकार राजनीतिक दलों के नेता एवं जनप्रतिनिधियों का रुख इस क्षेत्र की प्रमुख देवी की जगदी जात की ओर बढ़ रहा है, मेले में घोषणाएं एवं मांगें भी होने लगी हैं. क्षेत्र को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की भी मांग उठने लगी है.

अपनी बात


श्री शंकरसिंह रावतलैणी,

पंगरियाणा, हिंदाव।


माननीय पाठकों,

नौज्यूला हिंदाव की परमशक्तिमान, दुखों का निवारण करने वाली, हर घर-हर दिल में वास करने वाली, हम सबकी आस्था की प्रतीक जगतवंदनी देवी को मेरा शत्ï शत्ï नमन.इससे पूर्व हालांकि मुझे कई विषयों पर लेख लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, लेकिन मां जगतवंदनी जगदी के विषय में लिखने में जो अपनत्व का भाव महसूस हो रहा है वह बहुत ही सुखदायी है. वर्षों पूर्व जब में बहुत छोटा था और स्कूल पढ़ता था तब की यादों की तरफ में थोड़ा जाना चाहूंगा. साल के वो दो दिन ''दिन जात एवं जगदी जातÓÓ पूरे साल भर का इंतजार इन दो दिनों के लिए. मां जगदम्बा की इस पारंपरिक जात की शुरुआत में बाकी द्वारा बजाए जाने वाले शंखनाद से शुरू हुआ हृदय लुभावन, आस्था भरा आनंद, रिश्तेदारों का आगमन, घर के बुजुर्गों द्वारा दिया जाने वाला जात का खर्च, दोनों दिनों मां जगदी की डोली का रंगारंग रूप, उत्तेजित करने वाले मां के भक्तों द्वारा बजाए जाने वाले ताल, बाकियों द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद, रातभर शिलासौड़ में दिवारे बैठने का सौभाग्य, बाकियों द्वारा पारंपरिक नृत्य आदि कुछ ऐसे दृश्य स्मृति पटल पर नजर आते हैं जो आज भी मन को भाव-विभोर करते हैं. लेकिन जिन भाग्यशालियों को आज भी जगतवंदनी मां के इस दो दिवसीय वार्षिक महोत्सव (जात) में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त है वे मां का आशीर्वाद पाकर धन्य हैं.जैसा कि हम सभी को ज्ञात है कि उत्तराखंड की देवभूमि पर आज भी परमेश्वर हमारे देवी-देवताओं के रूप में मौजूद हैं. परदेश में लोग कहानियां सुनाते हैं कि हमारे यहां पुराने जमाने में ऐसी देवीय शक्तियां हुआ करती थीं, लेकिन हिंदाववासियों को तो यह वास्तविकता आज भी दृष्टिगोचर होती है. मां की महिमा का असर हर उस प्रार्थना में है जो हम सच्चे दिल से मां के चरणों में अपर्ण करते हैं. हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म मां की धरती पर हुआ और आजीवन मां का आशीर्वाद हमें मिलता रहेगा, यही परम सौभाग्य है हर हिंदाववासी का.मैं अपने समाज के प्रति भी गौरवान्वित महसूस करता हंू कि आज भी हमने अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को नहीं त्यागा, बल्कि उन्हें और भी उत्साह के साथ बढ़ावा देकर आस्था और विश्वास को सुदृढ़ किया है.तेजी से बदलते वक्त ने सामाजिक सोच के दायरे को भी बदला है. अत्याधुनिकीकरण ने जो वैज्ञानिक तरीके हमें मुहैया कराए, उसने हमसे छीना है तो हमारी धार्मिक आस्था और विश्वास, परंतु मां जगदी की महिमा इतनी सशक्त है कि मां के प्रति हमारी आस्था आज भी वही है, बल्कि और भी सुदृढ़ हुई है. मैं हर क्षेत्रवासी से विनती करूंगा कि इस आस्था को अपनी धरोहर बनाए रखें और मां जगदी की कृपा से आपके कार्य मंगलमय होते रहेंगे.साथ ही में श्री ज्योति राठौर एवं श्री गोविंदलाल आर्य को बधाई देता हंू कि उन्होंने एक नेक सोच का परिचय दिया. मां जगदी की महिमा घर-घर में पहुंचाने का काम निश्चित रूप में सराहनीय है. इस वर्ष मां जगदम्बा का १२ वर्ष बाद आने वाला यज्ञ (होम) होने जा रहा है, जिसमें हजारों भक्तों की मनोकामनाएं मां पूरी करेंगी, यह मेरी कामना है. मां के चरणों में समर्पित यह पुस्तक मां की महिमा की जानकारी भक्तों को देगी जो निश्चित रूप से वर्ष २००९ के होम को ऐतिहासिक और यादगार बना देगी.मैं एक बार पुन: मां के चरणों में नमन करते हुए नौज्यूला की समस्त जनता को प्रणाम करता हंू.''जय जगतवंदनी मांÓÓ(स्तंभकार मुंबई में कई सामाजिक संस्थाओं का सक्रिय संचालन कर रहे हैं.)

उत्तराखंड में सात्विक पूजा की मिसाल है मां जगदी

परिर्वतन प्रकृति का नियम है. बदलती परिस्थितियों के साथ पुरानी मानसिकताओं को बदलकर नए परिवेश में उचित परिर्वतनों को आत्मसात करना सभ्य समाज की परिवर्तनकारी सभ्यता का द्योतक है. भारतीय सभ्यता आधुनिक आदर्शोन्मुख यथार्थ से परिपूर्ण है. यह प्रगतिवादी है. हमारे पूर्वजों की धरोहर उनकी परंपरा है और हम उस परंपरा का पालन कर आगे बढ़े. लेकिन तर्क कहता है कि देश, काल, परिस्थिति के अनुसार परंपराओं में कुछ नवीनता का आवरण ही मान्य है, स्वीकार्य है. यह समय की कसौटी पर उतार कर दिखाया है, हिंदाव नौज्यूला की जगदी कमेटी ने. हिंदाव की जगदी में भी उत्तराखंड के अन्य देवियों, मठों की तरह सावन में अठवाड़ के दिन बलि प्रथा प्रचलित थी. किंतु जगदी कमेटी ने पिछले दशक में इस प्रथा को बंद कर इस दिन यज्ञ-हवन की पूजा व्यवस्था शुरू की. आज जबकि राज्य के कई मंदिरों में बलिप्रथा को बंद कराना वहां के प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है, वहीं जगदी कमेटी का जगदी की सात्विक पूजा का निर्णय राज्यवासियों के लिए प्रेरणादायी है. जगदी कमेटी द्वारा समय के साथ नए परिवर्तनों को आत्मसात करने के निर्णय जगदी की ख्याति को और भी बढ़ाते हैं. ........

इंटरनेट से भी हो सकेंगे मां जगदी के दर्शन

उत्तराखंड के जिला टिहरी गढ़वाल के घनसाली विधानसभा क्षेत्र के भिलंगना ब्लॉक के अंतर्गत हिंदाव की प्रसिद्ध देवी जगदी को इंटरनेट से जोडऩे के प्रयास किये जाएंगे. जगदी मां के इंटरनेट से जुड़ जाने के बाद मां से संबंधित दर्शन पूजन के विधि-विधान, जात की तिथि, आने वाले चढ़ावे का विवरण, पहर पूजा का समय, मां जगदी की महिमा, शिलासौड़, बाकी-पुजारियों का विवरण, पौराणिक कथाएं, जगदी स्थल हिंदाव तक पहुंचने के लिए यातायात के साधनों एवं आवागमन का विवरण, जगदी समिति के पदाधिकारियों के नाम, पता, टेलीफोन नम्बर आदि का विवरण सहित अन्य सूचनायें दर्ज किए जाने की योजना है. हमारा यह प्रयास सफल हो जाता है तो इंटरनेट से जुड़े अन्य प्रमुख मंदिरों की तर्ज पर देश-विदेश में बैठे भक्त अपनी कम्प्यूटर स्क्रीन पर भी जगदी दर्शन कर सकेंगे. भक्तों को इस वेबसाइट से अधिकतम जानकारियां मिल जायेंगी. हमारा प्रयास है कि मां जगदी की ख्याति राज्य स्तर में बने और इसके विकास के लिए कई योजनाओं को अमल में लाया जाएगा. जगदी जात को राज्य सरकार पोषित विशेष मेलों का दर्जा देने एवं अन्य विकासकार्यों के लिए राज्य सरकार के सहयोग हेतु विभिन्न मंत्रालयों द्वारा पूरा कराये जाने की ठोस पहल की जाएगी. घनसाली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत हिंदाव एवं ग्याहरागांव मेरा गृह क्षेत्र होने के नाते सर्व प्रथम अपने इस क्षेत्र को राज्य स्तर पर राजनीतिक परिदृश्य में विशेष क्षेत्र बनाने की पहल चरणबद्ध तरीके से की आने वाले वर्षों में शुरू होगी. केदारखंड के इस भू-भाग को अपने पृथक राज्य उत्तराखंड की गौरवमयी उपलब्धी दिलाने वाले उत्तराखंड के 'गांधीÓ की यह जन्मस्थली समूर्ण उत्तराखंड के लिए प्रेरणास्थल के रूप में विकसित हो, तमाम बुद्धिजीवियों को जोड़कर कारगर योजनाएं अगले चरणों में धरातल पर उतारने के प्रयास किये जाने हैं. यह मां जगदी, भगवान विश्वनाथ एवं मां कालिंका के आशीर्वाद एवं हिंदाव-ग्याहरागांव हिंदाव की जनता के जनसहयोग पर निर्भर करेगा कि चहुंमुखी विकास का उत्कृष्ट उदाहरण बनकर उत्तराखंड के गौरवमयी इतिहास का यह एक आर्दश क्षेत्र बन सके. -गोदाम्बरी आर्य

जो पाया जगदी की कृपा से पाया

श्री शंकर सिंह कुंवर

उत्तराखंडवासियों में उद्योगजगत के प्रमुख हस्ताक्षर कुराणगांव के मूल निवासी श्री शंकर सिंह कुंवर मुंबई में करोबार में मिली सफलता को जगदी की कृपा मानते हैं। उद्योगपति श्री शंकर सिंह कुंवर अपने मूलगांव कुराणगांव से सन् १९६४ के दौरान मुंबई आए। मुंबई में आने के बाद कुंवर जी ने भी रोजगार के लिए आने वाले आम प्रवासियों की तरह अपनी आजीविका शुरू की. किंतु मन में नौकरी से ऊपर उठ कर खुद के व्यवसाय करने की इच्छाशक्ति प्रबल थी. जगदी की कपा और श्री कुंवर के कठिन परिश्रम के बल पर कुंवर जी अपना व्यवसाय करने में सफल रहे और आज मुंबई में उत्तराखंड के तमाम उद्योगपतियों में श्री शंकर सिंह कुंवर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. श्री कुंवर अपनी इस उपलब्धि को मां जगदी का आशीर्वाद मानते हैं और क्षेत्र के लिए अपने योगदान को तत्पर हैं. कुंवर अपनी कर्म भूमि मुंबई को सलाम करते हैं, जहांपर उन्हें मेहनत का भरपूर प्रतिफल मिला और आज एक विशेष मुकाम हासिल किया है. मायानगरी मुंबई में कारोबार को नई बुलंदियों पर पहुंचाने की आपाधापी के बावजूद श्री कुंवर का जन्मभूमि के प्रति जुड़ाव कम नहीं है. यह मातृभूमि अपार प्रेम के चलते श्री कुंवर जी ने चाहे फिल्मों के जरिए हो या क्षेत्रवासियों को रोजगार मुहैया कराने की बात, कुंवर जी हमेशा इस जन्मभूमि को हमेशा प्राथमिकता दी है. कुंवर जी के ही शब्दों में कि मानों उनका शरीर भले मुंबई में हो, किंतु एक प्राण वहां भी बसता है. मुंबई के सामाजिक सरोकारों एवं प्रवासी उत्तराखंडियों की विभिन्न संस्थाओं में कुंवर जी की सहभागिता नौज्यूला को गौरवान्वित करती है. श्री कुंवर जी ने अपने कारोबार के कुशल संचालन के साथ ही जन्मभूमि के वाशिंदों के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं. हिंदाव ही नहीं, समूचे उत्तराखंड से रोजगार के लिए मुंबई आने वाला जो व्यक्ति श्री कुंवर जी के पास पहुंचा, उसे रोजगार दिलाने में मदद की है. श्री कुंवर हिंदाव क्षेत्र एवं आस-पास के हजारों लोगों के विदेश जाने के सपने को साकार कर चुके हैं. यह कार्य आज भी सतत जारी है।

जगदी को नमन

श्री दिनेश शाह


नौज्यूला की आराध्य देवी होने के नाते नौज्यूलावासियों की जहां जगदी के प्रति अटूट आस्था है, वहीं हिंदाव के पास-पड़ोस के लोग भी जगदी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं. अपने पुश्तैनी कारोबार को कुशलतापूर्वक संचालित कर रहे श्री दिनेश शाह हिंदाव की जगदी को नमन करते हैं. सोने की विश्वसनीयता एवं शुद्धता की जब भी बात आती है तो देश में 'मुंबई के सोनेÓ को पहला स्थान प्राप्त है. इसी विश्वास और शुद्धता को जब गढ़वाली गहनों कीशक्ल में ढालने-गढऩे की बात हो तो गढ़वालवासियों को मुंबई में एक ही नाम याद आता है और वह नाम है, श्री भरपूर शाह का. स्व. भरपूर शाह १२ वर्ष की उम्र में बजियालगांव (ग्याहरागांव हिंदाव) से रोजगार की तलाश में शहरों की ओर निकले. भरपूर शाह ने अपने अन्य साथियों के साथ लगभग १० वर्ष तक मसूरी में काम किया, किंतु स्थायी रोजगार के लिए यह नाकाफी था. श्री शाह १९६१ में मसूरी से मुंबई आए. मुंबई में उस दौर में रोजगार की कमी नहीं थी. सरकारी-अर्धसरकारी कंपनियों में रोजगार आसानी से उपलब्ध था, किंतु शाह जी की दूरदृष्टि का परिणाम था कि उन्होंने नौकरी के बजाय पूर्वजों से विरासत में मिली स्वर्णकला को अपने कारोबार के लिए सर्वोपरि माना और देखते ही देखते गढ़वाली-कुमाऊंनी गहनों के लिए एक विश्वसनीय नाम बन गए. श्री भरपूर शाह ने अपने कारोबार में अपने सुपुत्र श्री दिनेश शाह को भी पारंगत बनाया और विज्ञान स्नातक दिनेश शाह ने इस पुश्तैनी कारोबार में आधुनिक फैशनकला के कुशल संयोजन से 'सोने में सुहागाÓ की कहावत को सही मायनों में चरितार्थ किया. अपनी विरासत अपने पुत्र के पास छोड़कर श्री भरपूर शाह ने ३० नवंबर २००७ को अंतिम सांस ली. इससे पूर्व २४ मई १९९७ में भरपूर शाह की पत्नी श्रीमती राजमती शाह का निधन हुआ. दिनेश शाह मुंबई में अपने कारोबार को नया आयाम दे रहे हैं और आज जबकि उनके ग्राहक हर वर्ग राज्य के हैं, किंतु गढ़वाली-कुमाऊं के ग्राहकों के प्रति अपार स्नेह है और गढ़वाली-कुमाऊंवासियों के गहनों को बनाकर इसे मातृभूमि की सेवा मानते हैं. आज जबकि सोने की कीमत आसमान छू रही है, ऐसे में सीधे-सादे पहाड़वासियों को खरा सोना मिले, दिनेश शाह इस ध्येय के साथ सेवारत हैं.

जगदी के बाकियों की सूची

(१) श्री बुुटेर गंवाण (नेगी)

(२) श्री बैशाखू सिंह

(३) श्री केशरू सिंह

(४) श्री देबूसिंह

(५) श्री मुर्लूसिंह नेगी

(६) श्री कलीसिंह

(७) श्री दुर्गा सिंह

(८) श्री सौकार

(९) श्री रूपचंद सिंह

(१०) श्री रघुबीर सिंह नेगी (वर्तमान

जगदी के पुजारी अवधि

(१) श्री शीशराम थपलियाल (ज्ञात नहीं)

(२) श्री शंकरदत्त थपलियाल (४५ वर्ष)

(३) श्री पिताम्बरदत्त थपलियाल (२७ वर्ष)

(४) श्री महिमानंद थपलियाल (१८ माह)

(५) श्री कमलनयन थपलियाल (३२ वर्ष)

(६) श्री यशोदानंद थपलियाल (वर्तमान)

बताया यह भी जाता है कि जगदी के पुजारी के तौर पर श्री ईश्वरी दत्त थपलियाल जी भी नियुक्त हुए थे, हालांकि इनके पास एक दिन भी देवता रहने का जिक्र नहीं मिला है।-नोट- पूज्य बाकी एवं सम्मानित पुजारियों की सूची में उल्लेखित नामों को यद्यपि क्रमवार देने का प्रयास किया गया है, लेकिन यह कार्यकाल आगे-पीछे संभाव्य हैं।

माँ जगदी

देवभूमि उत्तराखंड देवताओं की भूमि के रूप में विख्यात है. देवभूमि से जुड़ी कई सत्यकथाएं आज भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णअक्षरों में दर्ज हैं. हमारे मेले-कौथिग गवाह हैं कि पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपराओं को प्रत्येक पीढिय़ों ने उत्साहपूर्वक मनाया. साथ ही ऐसी भी कई प्रचलित सत्यकथाएं रहीं, जो कागज के टुकड़ों में लिपिबद्ध नहीं होने के कारण या तो दंतकथाएं बन कर रह गईं या फिर बुजुर्गों की चिताओं में जल कर ही राख हो गईं. स्थापित परंपराओं को हम भले निभाते जा रहे हैं, किंतुउन प्रसंगों के अलिखित होने के कारण अपने मेले-उत्सवों के महत्व को और गहराई से नहीं जान सके. पूर्वर्जों द्वारा स्थापित मेले पीढ़ी-दर-पीढ़ी लगेंगे, लेकिन इसके साथ ही एक ऐसा इतिहास भी विस्मृत होता जाएगा, जिसे हम सहेज कर नहीं रख सके. आज जबकि हमारे पास संसाधनों का अभाव नहीं है, ऐसे में यह हमारा नैतिक कर्तव्य बन जाता है कि इस दिशा में हम मिलकर ऐसा प्रयास करें, जिससे जगदी से जुड़े विभिन्न प्रसंगों से आने वाली पीढ़ी रू-ब-रू हो सके. हिंदाव की जगदी पर आधारित ''मां जगदीÓÓ नामक यह लिखितआयोजन ऐसा ही एक प्रयास है, जिसकी संकल्पना को बुद्धिजीवियों ने अपना अमूल्य सहयोग प्रदान किया और हम इस आयोजन को 'मां जगदीÓ को समर्पित करने में सफल हुए हैं. प्रसार-प्रचार के इस दौर में हिंदाव की जगदी का परिचय भी लिखित रूप में लोगों तक पहुंचे, यह हमारा उद्देश्य है. पुस्तक में विभिन्न लेखों के माध्यम से जगदी की उत्पत्ति से लेकर अन्य विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है. पुस्तक के माध्यम से जहां नई पीढ़ी को अपनी आराध्य देवी जगदी की लिखित जानकारी उपलब्ध होगी, वहीं पास-पड़ोस की पट्टिïयों के अलावा जगदी का परिचय राज्य में विस्तार करेगा. निश्चित तौर पर इस प्रयास की सफलता सुधीपाठकों की राय पर निर्भर करेगी.बहरहाल, यह नौज्यूला हिंदाव की जगदी के इतिहास को लिखित रूप में संजोने की शुरुआती कोशिश मात्र है. यह भी संभव है कि जगदी से जुड़े और भी कई प्रसंग हमारे बुजुर्गों, बुद्धिजीवियों की यादों के स्मरण पटल पर हों और हम उन तक नहीं पहुंच पाए हों. हमने इस आयोजन में अधिकाधिक लोगों को शामिल करने की कोशिश की और यह पहल आगे भी जारी रहेगी. मेरा आग्रह है कि क्षेत्र के बुद्धिजीवी, बुजुर्ग जगदी से जुड़े अपने संस्मरण, फोटो सामग्री एवं इस ''मां जगदीÓÓ नामक लिखित आयोजन पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेजें, ताकि आने वाले समय में इस लिखित पहल को और भी पठनीय और समग्र आकार दिया जा सके. जगदी के संबंध में लिखित जानकारी पाठकों तक पहुंचाने हम प्रतिबद्ध हैं और प्रतिबद्धता की कसौटी पर खरा उतरना क्षेत्रवासियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है.

आपका हार्दिक स्वागत

आपका हार्दिक स्वागत

फिर उत्तराखंड की उपेक्षा

केन्द्रीय मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में भी उत्तराखंड को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. जिससे पहाड़ की जनता निराश है. केंद्र सरकार में उत...