ठ्ठ अबिंडा अपने नाम के अनुरूप कार्यसिद्धि में बाधक होने का परिचायक है. बताते हैं एक बार नौज्यूला के पंचों ने जगदी को मयाली कंकण ले जाने का निर्णय लिया. किंतु इस स्थान तक पहुंच जाने के बाद लाख कोशिशों के बाद भी लोगों को मयाली कंकण का रास्ता नहीं मिला. अंतत: लोगों को यहां से वापस लौटना पड़ा, जिससे यह स्थान अबिंडा के नाम से प्रचलित हुआ....और आंखें खुल गईं ठ्ठ बताते हैं मयाली कंकण यात्रा के दौरान भौंणा के घंडियाल के बाकी श्री मोर सिंह जी सभी श्रद्धालुओं में काफी वृद्ध व्यक्ति थे. श्री मोर सिंह जी की नयन दृष्टि भी कमजोर थी, किंतु जगदी के चमत्कार से जहां मयाली कंकण मार्ग में इनकी आंखें खुल गईं, वहीं पूरी यात्रा में उत्साहपूर्वक डटे रहे.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
फिर उत्तराखंड की उपेक्षा
केन्द्रीय मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में भी उत्तराखंड को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. जिससे पहाड़ की जनता निराश है. केंद्र सरकार में उत...
-
उत्तराखंड युग-युगांतर से भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थली, तपस्थली और शांति प्रदाता रही है। हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं, कल कल करती नदिया...
-
शरद ऋतु के बाद शिशिर ऋतु जैसे ही शुरू होने लगती है पर्वतीय इलाकों में ठंड का साम्राज्य शुरू हो जाता है और फिर जैसा कि हम जानते हैं, जंगलों म...
-
आपका हार्दिक स्वागत
No comments:
Post a Comment