Thursday, June 17, 2010

मेरा परिचय

मैं गोविंदलाल आर्य, जनपद टिहरी गढ़वाल उ ाराख ड का मूल निवासी एवं वर्तमान में नवी मुंबई के नवीन पनवेल का रहिवासी हंू. मेरा ज म ०१ जनवरी १९७५ को पंगरिया ाा में हुआ. साथ ही प्राथमिक शिक्षा यहीं की पाठशाला में हुई. पहले गुरु ाी एलमदास जी चांजी गांव हिंदाव के थे. इसके बाद कक्षा ६ से ८ तक की शिक्षा उ"ातर मा यमिक विद्यालय मथकुड़ी सैं ा से हुई, यह विद्यालय आज राजकीय इंटर कालेज बन चुका है. हिंदाव में हाईस्कूल में वि ाान वर्ग से पढ़ाई की सुविधा कहीं नहीं थी इसके लिए निकटतम कालेज रा. इ. का. अखोड़ी था. किंतु जनता उ"ातर मा यमिक विद्यालय कठूड़ में भी ९वीं में पहली बार वि ाान वर्ग की कक्षाएं शुरू होने की तैयारी थी. इस विद्यालय में ९वीं वि ाान वर्ग की कक्षा के हम प्रथम बैच के छा ा थे. १०वीं बोर्ड की परीक्षा का केंद्र उस समय रा.इ.का. अखोड़ी था और इंटर में उस दौरान यहां वि ाान वर्ग की कक्षाएं संचालित होती थीं. मैंने भी १९९० में इंटरमीडिएट की पढ़ाई यहीं से करते हुए १९९२ में कक्षा १२वीं यहां से उ र्ती ा किया. उ"ा शिक्षा के लिए हेमवती नंदन बहुगु ाा गढ़वाल विश्वविद्यालय के स्वामी रामतीर्थ कैंपस टिहरी में १९९३ को दाखिल हुआ. यह पल जीवन के यादगार पलों में एक है, विश्वविद्यालय में दाखिले का पल खास इसलिए भी कि हमारी पूरी पट्टïी से ही उस दौर में बहुत कम लोग उ"ा शिक्षा की ओर कदम बढ़ाते थे.मैंने विवि में प्रवेश लिया एवं ठक्करबापा छा ाावास में भी रहने के लिए व्यवस्था हुई. वि.वि. के साथ ही ठक्करबापा छा ाावास में लगातार एम.ए. तक ५ साल बिताए पल गए वो पल हैं जो हमेशा हर सुबह की तरह ताजे हैं.आ ाम में ाी भवानी भाई जी के सानि य में कठोर अनुशासना मक जीवन आज भी जीवन को सबल प्रदान करता है. सुबह-शाम की प्रार्थनाएं हों या फिर भोजन पूर्व मं ाो"ाार, सब आचार-विचार के साथ जीने के मायने उस दौरान सीखे. भवानी भाई की चर्चा आगे करूंगा, योंकि ऐसे महापुरुषों पर लिखने के अवसर कभी-कभी ही मिलते हैं. साथ ही उस दौरान टिहरी बांध विरोधी आंदोलन, जो कि प्र यात पर्यावर ाविद् ाी सुंदरलाल बहुगु ाा जी द्वारा किया जा रहा था, में 'गंगा को अविरल रहने दो गंगा को अविरल बहने दोÓ में प्रभात फेरियों में हिस्सा लेने के पल हमेशा यादगार हैं.एम.ए. करने के दौरान अपने भाईयों से मिलने मुंबई आया. यूं तो बी.ए. करने के दौरान भी दो बार आया था मुंबई, किंतु तब स्नातक होना मेरे लिए प्राथमिकता थी. एम.ए. करने के दौरान मुंबई आया तो यहां अंग्रेजी अखबारों में विभिन्न कोर्सों के बारे में छपे वि ाापनों ने उ ाराख ड वापस जाने के बजाए कोई कोर्स करने की इच्छा प्रबल हुई. भाई लोगों ने भी कोई कोर्स की बात की. मैं अंग्रेजी अखबार रोज पड़ता और उसमें प्रवेश संबंधी कोर्सों के बारे में देखता. फिर एक दिन के.सी. कालेज चर्चगेट गया और वहां से पर्सनल मैनेजमेंट का फार्म लेकर आया. वहां दाखिला लिया साथ ही मुंबई विद्यापीठ ने भी पहली बार हिंदी प ाकारिता की सं याकालीन कक्षाएं शुरू कीं. मैंने यहां भी प्रवेश लिया और कोर्स शुरू किया.इस दौरान १९९७ में मुंबई से हिंदी दैनिक नवभारत के आने की खबर दोस्तों ने दी. ट्रेन, स्टेशन, शहरों में नवभारत के आने के वि ाापन छाए थे. मेरी इच्छा भी हुई कि मैं भी अखबार वाइन करूं. मैं संस्थान में गया. मैंने साक्षा कार दिया और संपादकीय विभाग में वाइन कर लिया. इस बीच गांव लौटने में देेरी हो गई और मैं मुंबईकर बन गया.

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