परिर्वतन प्रकृति का नियम है. बदलती परिस्थितियों के साथ पुरानी मानसिकताओं को बदलकर नए परिवेश में उचित परिर्वतनों को आत्मसात करना सभ्य समाज की परिवर्तनकारी सभ्यता का द्योतक है. भारतीय सभ्यता आधुनिक आदर्शोन्मुख यथार्थ से परिपूर्ण है. यह प्रगतिवादी है. हमारे पूर्वजों की धरोहर उनकी परंपरा है और हम उस परंपरा का पालन कर आगे बढ़े. लेकिन तर्क कहता है कि देश, काल, परिस्थिति के अनुसार परंपराओं में कुछ नवीनता का आवरण ही मान्य है, स्वीकार्य है. यह समय की कसौटी पर उतार कर दिखाया है, हिंदाव नौज्यूला की जगदी कमेटी ने. हिंदाव की जगदी में भी उत्तराखंड के अन्य देवियों, मठों की तरह सावन में अठवाड़ के दिन बलि प्रथा प्रचलित थी. किंतु जगदी कमेटी ने पिछले दशक में इस प्रथा को बंद कर इस दिन यज्ञ-हवन की पूजा व्यवस्था शुरू की. आज जबकि राज्य के कई मंदिरों में बलिप्रथा को बंद कराना वहां के प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है, वहीं जगदी कमेटी का जगदी की सात्विक पूजा का निर्णय राज्यवासियों के लिए प्रेरणादायी है. जगदी कमेटी द्वारा समय के साथ नए परिवर्तनों को आत्मसात करने के निर्णय जगदी की ख्याति को और भी बढ़ाते हैं. ........
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फिर उत्तराखंड की उपेक्षा
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