Friday, June 18, 2010
आसपास की पट्टिïयों में भी आस्था और श्रद्धा के साथ लिया जाता है जगदी का नाम
हिंदाव की आराध्य देवी जगदी का पास-पड़ोस की पट्टिïयों में गहरा प्रभाव है और देवी जगदी के प्रति अटूट आस्था है. अपने पूर्वजों की कही इन्हीं बातों का स्मरण करा रहे हैं राजस्थान सूचना केंद्र, मंबई में कार्यरत श्री बीरेंद्र सिंह बिन्दवाल.नौज्यूला की जगदी मां की गाथा के बारे में हमारे पूर्वज कहते थे कि मां जगदी प्रति वर्ष अंथवालगांव से पूस की 15 गते बाहर आती है. जगदी की इसी भव्य यात्रा को देखने उनके हजारों भक्तगणों का तांता लग जाता है. कहते हैं भक्तों का मन तब और भी उत्साहित हो जाता है, जब नौज्यूला के दर्जनों ढोल-दमाऊं एवं भाणा-भंकोरों की आकाश को मात देने वाली मृदंग आवाज के बीच भक्तों का काफिला पंगरिया के चौक से आगे बढ़ता है. जगदी को चढ़ावे के रूप में आने वाले न्यौजा-निशाणों की मनोहारी छटा यात्रा में रंगत घोल देती है. जगदी अंथवालगांव के नीचे भव्य मंदिर में नाचती है वह दृश्य भी देखने लायक होता है. उसके बाद जगदी अपने आरंभ्य देव पंगरिया आती है और फिर शिलासौड़ के लिए अपने अगवानी वीर क्षेत्रपाल, नागराजा, घण्डियाल, नगेला आदि की सहित आगे बढ़ती है. इस दौरान अंथवालगांव, कुराणगांव सहित शिलासौड़ तक जो भी गांव रास्ते में आते हैं, लोग पूजा-पिठाईं देकर जगदी के दर्शन करते हैं. जगदी का पशुआ भक्तों को जसीले 'ज्योंदालÓ देता है, जिसके फलस्वरूप भक्त अपने जीवन में सुख-शांति परते हैं. रात्रि के समय जगदी अपने अंतिम पड़ाव शिलासौड़ में जाती है, जहां जगदी का पत्थर के ऊपर मंदिर बना है. यहां पर हजारों दिशा-धियाणी अगले दिन मेले में आती हैं. अंत में मां जगदी क्षेत्र की पास-पड़ोस की पट्टिïयों के हर घर-परिवार की रक्षा करना यही मेरी विनती है.-श्री वीरेन्दर सिंह बिन्दवाल,मूल निवास : ग्राम-पौंठी चौंरालगांव, पट्टïी- सिलगढ़जिला-रुद्रप्रयाग.वर्तमान पता : राजस्थान सूचना केंद्र, कांसाब्लांका अपार्टमेंट, कफ परेड, मुंबई.
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