श्री शंकर सिंह कुंवर
उत्तराखंडवासियों में उद्योगजगत के प्रमुख हस्ताक्षर कुराणगांव के मूल निवासी श्री शंकर सिंह कुंवर मुंबई में करोबार में मिली सफलता को जगदी की कृपा मानते हैं। उद्योगपति श्री शंकर सिंह कुंवर अपने मूलगांव कुराणगांव से सन् १९६४ के दौरान मुंबई आए। मुंबई में आने के बाद कुंवर जी ने भी रोजगार के लिए आने वाले आम प्रवासियों की तरह अपनी आजीविका शुरू की. किंतु मन में नौकरी से ऊपर उठ कर खुद के व्यवसाय करने की इच्छाशक्ति प्रबल थी. जगदी की कपा और श्री कुंवर के कठिन परिश्रम के बल पर कुंवर जी अपना व्यवसाय करने में सफल रहे और आज मुंबई में उत्तराखंड के तमाम उद्योगपतियों में श्री शंकर सिंह कुंवर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. श्री कुंवर अपनी इस उपलब्धि को मां जगदी का आशीर्वाद मानते हैं और क्षेत्र के लिए अपने योगदान को तत्पर हैं. कुंवर अपनी कर्म भूमि मुंबई को सलाम करते हैं, जहांपर उन्हें मेहनत का भरपूर प्रतिफल मिला और आज एक विशेष मुकाम हासिल किया है. मायानगरी मुंबई में कारोबार को नई बुलंदियों पर पहुंचाने की आपाधापी के बावजूद श्री कुंवर का जन्मभूमि के प्रति जुड़ाव कम नहीं है. यह मातृभूमि अपार प्रेम के चलते श्री कुंवर जी ने चाहे फिल्मों के जरिए हो या क्षेत्रवासियों को रोजगार मुहैया कराने की बात, कुंवर जी हमेशा इस जन्मभूमि को हमेशा प्राथमिकता दी है. कुंवर जी के ही शब्दों में कि मानों उनका शरीर भले मुंबई में हो, किंतु एक प्राण वहां भी बसता है. मुंबई के सामाजिक सरोकारों एवं प्रवासी उत्तराखंडियों की विभिन्न संस्थाओं में कुंवर जी की सहभागिता नौज्यूला को गौरवान्वित करती है. श्री कुंवर जी ने अपने कारोबार के कुशल संचालन के साथ ही जन्मभूमि के वाशिंदों के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं. हिंदाव ही नहीं, समूचे उत्तराखंड से रोजगार के लिए मुंबई आने वाला जो व्यक्ति श्री कुंवर जी के पास पहुंचा, उसे रोजगार दिलाने में मदद की है. श्री कुंवर हिंदाव क्षेत्र एवं आस-पास के हजारों लोगों के विदेश जाने के सपने को साकार कर चुके हैं. यह कार्य आज भी सतत जारी है।
जगदी को नमन
श्री दिनेश शाह
नौज्यूला की आराध्य देवी होने के नाते नौज्यूलावासियों की जहां जगदी के प्रति अटूट आस्था है, वहीं हिंदाव के पास-पड़ोस के लोग भी जगदी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं. अपने पुश्तैनी कारोबार को कुशलतापूर्वक संचालित कर रहे श्री दिनेश शाह हिंदाव की जगदी को नमन करते हैं. सोने की विश्वसनीयता एवं शुद्धता की जब भी बात आती है तो देश में 'मुंबई के सोनेÓ को पहला स्थान प्राप्त है. इसी विश्वास और शुद्धता को जब गढ़वाली गहनों कीशक्ल में ढालने-गढऩे की बात हो तो गढ़वालवासियों को मुंबई में एक ही नाम याद आता है और वह नाम है, श्री भरपूर शाह का. स्व. भरपूर शाह १२ वर्ष की उम्र में बजियालगांव (ग्याहरागांव हिंदाव) से रोजगार की तलाश में शहरों की ओर निकले. भरपूर शाह ने अपने अन्य साथियों के साथ लगभग १० वर्ष तक मसूरी में काम किया, किंतु स्थायी रोजगार के लिए यह नाकाफी था. श्री शाह १९६१ में मसूरी से मुंबई आए. मुंबई में उस दौर में रोजगार की कमी नहीं थी. सरकारी-अर्धसरकारी कंपनियों में रोजगार आसानी से उपलब्ध था, किंतु शाह जी की दूरदृष्टि का परिणाम था कि उन्होंने नौकरी के बजाय पूर्वजों से विरासत में मिली स्वर्णकला को अपने कारोबार के लिए सर्वोपरि माना और देखते ही देखते गढ़वाली-कुमाऊंनी गहनों के लिए एक विश्वसनीय नाम बन गए. श्री भरपूर शाह ने अपने कारोबार में अपने सुपुत्र श्री दिनेश शाह को भी पारंगत बनाया और विज्ञान स्नातक दिनेश शाह ने इस पुश्तैनी कारोबार में आधुनिक फैशनकला के कुशल संयोजन से 'सोने में सुहागाÓ की कहावत को सही मायनों में चरितार्थ किया. अपनी विरासत अपने पुत्र के पास छोड़कर श्री भरपूर शाह ने ३० नवंबर २००७ को अंतिम सांस ली. इससे पूर्व २४ मई १९९७ में भरपूर शाह की पत्नी श्रीमती राजमती शाह का निधन हुआ. दिनेश शाह मुंबई में अपने कारोबार को नया आयाम दे रहे हैं और आज जबकि उनके ग्राहक हर वर्ग राज्य के हैं, किंतु गढ़वाली-कुमाऊं के ग्राहकों के प्रति अपार स्नेह है और गढ़वाली-कुमाऊंवासियों के गहनों को बनाकर इसे मातृभूमि की सेवा मानते हैं. आज जबकि सोने की कीमत आसमान छू रही है, ऐसे में सीधे-सादे पहाड़वासियों को खरा सोना मिले, दिनेश शाह इस ध्येय के साथ सेवारत हैं.
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