अग्नि परीक्षा के दौर से भी गुजरी जगादीअस्था और विश्वास के बीच कभी ऐसे भी छण आते हैं, जब मनुष्य का अहम सृष्टि प्रदत्त व्यवस्थाओं को नकारते हुए स्वयं को सर्वोत्तम मानने की भूल कर बैठता है. हिंदाव की जगदी को भी इस दौर से गुजरना पड़ा और अंतत: देवी के चमत्कार के आगे नौज्यूला के लोग नतमस्तक हुए. हमारे बुजुर्गों ने जगदी सौड़ से मेला समापन के बाद बिना पीछे मुड़े भागने का रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि एक बार जब जगदी की जात मेले के समापन से पूर्व शिलासौड़ में सभी बाकियों पर देवी-देवता अवतरित हुए तो मंदिर परिक्रमा के दौरान जगदी के बाकी की टक्कर से स्थानीय पंच अध्वाण महापुरुष (तत्कालीन संयाणा) की टोपी सिर से नीचे जमीन पर गिर गई. अपनी टोपी के नीचे गिरने को अपना अपमान समझते हुए संयाणा जी ने निर्णय दिया कि देवता की सच्चाई की होनका साधना (अग्नि परीक्षा) ली जाएगी. पंचों नेे इस निर्णय के मुताबिक आस-पास से बड़ी मात्रा में लकडिय़ां एकत्र कर 'होनकाÓ की तैयारी की. बताते हैं जब अग्नि प्रचंड भभकने लगी फिर ढोल बजाकर जगदी की अग्नि परीक्षा का आह्वïान किया गया. मायावी माया के लिए यह ऐसी घड़ी थी कि इंसानों और देवताओं के बीच के अंतर को मूर्त रूप में सिद्ध कर जनविश्वास पर देवशक्ति की छाप छोडऩी थी. अत: जगदी अपने बाकी पर स्वयं अवतरित होकर ढोल गर्जना के साथ आग की लपटों में समा गई. जनश्रुति है कि जैसे ही जगदी का बाकी पत्थर की शिला से अग्रि में कूदा सारे लोग वहां से भाग खड़े हुए.
Tuesday, June 29, 2010
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फिर उत्तराखंड की उपेक्षा
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