उत्तराखंड युग-युगांतर से भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थली, तपस्थली और शांति प्रदाता रही है। हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं, कल कल करती नदियां, मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य, तीर्थस्थल, सीढ़ीनूमा खेत, छोटे-छोटे गांव मानव मन को अपनी ओर आकर्षित कर देते हैं। प्रत्येक गांव में शिवालय व विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर अपने आप में देवभूमि होने का प्रमाण है। उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में इन देवस्थलों पर कौथिग (मेले) लगते हैं. बड़े ही उत्साह के साथ लोग श्रद्धाभाव से अपने ईष्टों का पूजन करते हैं व उस मेले में शामिल होते हैं. मां जगत जननी भगवती पार्वती तो उत्तराखंड की आराध्य देवी कुलदेवी हैं. मां शक्ति की आराधना तो उत्तराखंड के घर-घर में की जाती है. उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद के अंतर्गत पट्टïी भिलंग में भी मां जगदम्बा की जात दी जाती है. संपूर्ण भिलंग पट्टïी की ईष्ट देवी है मां जगदी (जगदम्बा). प्रत्येक वर्ष घुत्तु के ऊपर बुगेलाधार में जगदी का उत्सव मनाया जाता है. इस मेले में भिलंग पट्टïी के चंदला, देवंज, महरगांव, राणी डांग, घणाती, चडोली, कंडार गांव, कोड़ी, रैतगांव, सटियाला, दरजियाणा, कोट, ऋषिधार, मल्ला गवांणा, तल्ला गवांणा, टमोटेणा, खाल, पुजारगांव, मेन्डू, सेंदवाल गांव, भाटगांव, गेंवालकुड़ा, कैलबागी, नगर कोट्ïयाणा, कन्याज इत्यादि गांव शामिल होते हैं. बुगेलाधार में मां जगदी का दिव्य मंदिर स्थापित है, इसके साथ-साथ नागेंद्र देवता, साधु की कुटिया व अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं. संपूर्ण भिलंग पट्टïी में ज्येष्ठ माह में प्रत्येक गांव जगदी की जात देता है और उसके बाद सभी गांवोंं की पंचायत बुलाकर एक तिथि निर्धारित की जाती है और उस दिन विशाल रूप से यह उत्सव मनाया जाता है. मां जगदी की पूजा अर्चना चंदला गांव के पैन्यूली जाति के ब्राह्मïणों द्वारा होती है. देवी जात के पहले दिन मेळाग- फॉन्टा (चंदा) जमा करके देवी के मूल स्थान 'टाटगÓ स्थान पर जाते हैं. टाटग एक स्थान है, जो कि बिशोन का डांडा (पर्वत) के नीचे है. टाटग स्थान पर एक शिला है, जिसे जगदी का मूल स्थान माना गया है. वहां रातभर उस शिला की पूजा होती है. रात्रभर सभी श्रद्धालू जागरण करते हैं. बिशोन का डांडा पंवाली बुग्याल से शुरू होता है और कुंणी, मंजेठी, जान्द्रीय सौड़ तक फैला है, यहां वर्षभर बारिस होती है. बिशोन डांडा की एक ओर बांगर व लस्या पट्टिïयां हैं तथा दूसरी ओर भिलंग व दोणी हिंदाव पट्टïी है. इस घनघोर जंगल में मां जगदी आछरियों से मिलने जाती है तथा रातभर पूजापाठ के बाद टाट्ग स्थान से दूसरे दिन बुगेलाधार पहुंचती है. बुगेलाधार पहुंचने पर उस दिन इस स्थान पर बहुत बड़ा मेला (कौथिग) लगता है. इस कौथिग को संपूर्ण भिलंग पट्टïी के लोग हर्षोउल्हास के साथ मनाते हैं. उस दिन बुगेलाधार में एक ओर जहां बाजार सजा रहता है, वहीं दूसरी ओर ढोल-दमाऊं की थाप पर लोग पांडव नृत्य करते हैं. दूर-दूर से ध्याणे (महिलाएं) आकर एक-दूसरे के गले लगती हैं और शृंगार की विभिन्न वस्तुएं खरीदती हैं. लोग देवी की डोली को दिनभर कंधे पर उठाकर नचाते हैं. संपूर्ण पट्टïी के लोग अपना न्यूता डालते हैं, देवी का पसुवा के माध्यम से उनका संदेश सुनते हैं. तत्पश्चात सायंकाल को देवी की डोली तल्ला गवाणा को प्रस्थान करती है, जहां वह बगडवाल लोगों के स्थान पर विराजती है. पट्टïी के जिस गांव में पूजा होती है, वे इस डोली को वहां से सम्मान से ले जाते हैं तथा उसकी पूजा अर्चना करते हैं. बुगेलाधार में स्थित यह मंदिर जगदंबा सर्व सेवा समिति, मुंबई द्वारा बनाया गया है. यह समिति सन्ï १९६५ में बनी थी तथा आज से २०-२२ वर्ष पहले यह मंदिर बनाया गया था. बिनाशकारी भूकंप आने से मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. परंतु मां जगदी के आशीर्वाद से मुंबई की समिति ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया. इसके साथ-साथ जगदम्बा सर्व सेवा समिति, मुंबई ने नागेंद्र देवता का मंदिर व एक भव्य जगशाला का भी निर्माण करवाया. मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र धन धान्य से परिपूर्ण है. देवस्थानों के साथ-साथ यह क्षेत्र रमणिक भी है. कारण यहां से पंवाली कांठा, त्रिजुगीनारायण, केदारनाथ पैदल मार्ग, खतलिंग ग्लेशियर, सहस्त्रताल, गंगी, कल्याणी जैसे पवित्र व मनमोहक स्थल भी हैं. आने वाले समय से तीर्थाटन व पर्यटन के क्षेत्र में यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र उत्तराखंड का पांचवां धाम होगा. जय जगदी मां!(लेखक हिमशैल, मुंबई के प्रधान संपादक हैं)
Friday, June 18, 2010
बगडवालों के यहां विराजती है भिलंग की जगदी मां
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bahut hi badiya jankari d i hai aapne arya ji keep it up
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