वर्षभर में एक बार होने वाली शिलासौड़ की रात्रि जात का विशेष महत्व है. आज क्योंकि जगदी जात एवं अगले दिन शिलासौड़ में लगने वाले मेले का स्वरूप बढ़ता जा रहा है, परंतु अपने नाम के अनुरूप शिलासौड़ में रात्रि जात ही देवी का मुख्य आकर्षण है. शिलासौड़ में जगदी की रात में चारों पहर पूजा होती है. यहां श्रद्धालू अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए दूर-दूर से आते हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में 'दिवारूÓ कहा जाता है. अगले दिन यहां बड़ा मेला लगता है. रात्रि जात में जगदी की चारों पहरों की पूजा का विशेष महत्व है. स्थानीय लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने के लिए रात भर अखंड दीप जला कर जागरण करते हैं. जगदी के रात्रि जागरण के अखंड दीप अगले दिन अपने घरों तक लाना अति शुभप्रसंग माना जाता है. माना जाता है कि यद्यपि जगदी के दर्शन मात्र से ही लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं, परंतु जो जगदी के रात्रि जागरण के साक्षी बनते हैं उनकी मनोकामनाएं ओर भी शीघ्र पूर्ण होती हैं. इधर, हिंदाव के गांवों में पूर्व दिवस से ही जात की चहल-पहल शुरू रहती है और शिलासौड़ मेले में पहुंचने के लिए लोग सुबह-सुबह घरों को छोड़ देते हैं. दूर-दूर से लोग समय पर शिलासौड़ पहुंचने के लिए रंग-रंगीले झुंडों में यात्रा मार्ग में नजर आते हैं. सुबह जगदी की पूजा-पाठ के बाद जैसे-जैसे दिन का सूर्य अपने यौवन पर होता है, शिलासौड़ में मेलार्थियों की भीड़ बढऩे लगती है और फिर आम मेलों की तरह यह मेला भी भीड़-भाड़ धींगामस्ती में तब्दील हो जाता है. मेले में कई दुकानें लगी होती हैं, जिनमें चूड़ी-बिंदी, जलैबी-पकोड़ी से लेकर हर माल खूब बिकता है.
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