Friday, July 2, 2010

पूजा विधि एवं व्यवस्थाएं

जगदी के अवतरित होने के बाद मां ने अपनी प्रजा की रक्षा हेतु चत्मकारिक शक्ति का अहसास कराया. फिर जगदी की स्थापना को लेकर पंचों ने सर्व सम्मति से कई निर्णय लिए. बैठक में सबसे पहले इस बात पर चर्चा हुई कि आखिर देवी जगदी की पूजा-विधि कौन करेगा. कहा जाता है कि जगदी की नियमित पूजा एक जटिल प्रश्न था, ऐसे में पंचों ने इस कार्य हेतु वेदों के ज्ञाता थपलियाल वंश के पंडितों के यहां देवी मूर्ति रखने का निर्णय लिया. ऐसे में देवी की विधिवत पूजा, खास पर्वों एवं घड़ी-नक्षत्रों में विशेष पूजा के लिए ागदी की पूजा-पाठ का दायित्व थपलियाल ब्राह्मïणों को दिया गया. बताते यह भी हैं कि जिला पौड़ी के अणथीगांव के थपलियाल वंशी जो ग्यारहगांव हिंदाव के डांग में निवास करते थे वहां से थपलियालों को खासकर जगदी की पूजा-विधि के लिए अंथवालगांव लाया गया.नौज्यूला की पंचों की कमेठी द्वारा नियुक्त थपलियाल ब्राह्मïण जगदी स्थापना से लेकर आज तक जगदी की पूजा-पाठ करते हैं और अंथवाल ब्राह्मणों को जगदी को प्राश्रय देने विशेष स्थान प्राप्त है. अंथवाल ब्राह्मïणों पर देवी जगदी अवतरित भी होती हैं. ïइसी के साथ जगदी के बाकी एवं पूजनविधि पर सार्थक चर्चा के बाद पूस महीने में एक दिन की जात शिलासौड़ में देना तय हुआ. साथ ही प्रत्येक सावन की अठवाड़ को बकरों की बलि शिलासौड़ में देना तय हुआ. अर्थात प्रत्येक साल के कैलेंडर वर्ष में पूस माह (दिसंबर) के शुभ नक्षत्र में एक रात की जात शिलासौड़ में, सावन में अठवाड़ और फिर प्रत्येक १२ साल में होम (महायज्ञ) नारायण में होना निश्चित हुआ. आज तक यह परंपरा के अनुसार होता आ रहा है और ऐसे कोई उल्लेख नहीं मिला कि इन त्यौहारों में कभी कहीं ठहराव आया हो. इसके अलावा बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) एवं मयाली कंकण की स्नान-यात्राएं भी सार्वजनिक मन्नतस्वरूप पंचों/कमेटी के निर्णयानुसार समय-समय पर आयोजित की जाती हैं. बैठक में प्रत्येक वर्ष के मार्गशीर्ष महीने के अंत एवं पूस माह की संक्रांति को जात के आयोजन की तिथि संबंधी बैठक का आयोजन होना निश्चित हुआ और आज तक यह परंपरा ओर भी उमंगों के साथ चली आ रही है. संक्रांति के दिन नौज्यूला के पंच अपने गांवों से गाजे-बाजे के साथ बैठक स्थल पंगरिया के चौक में पहुंचते हैं. बैठक के इस दिन पुजारी ब्राह्मïणों द्वारा जगदी जात के लिए विधि-विधान से शुभ मुहूर्त निकाला जाता है. जात की तिथि निकालते समय स्थानीय मौसम एवं परिस्थितियों की समीक्षा भी की जाती है और फिर एक दिन पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है. यहीं से कमेटी पर्चे आदि के माध्यम से पास-पड़ोस की पट्टिïयों में भी जात की तिथि से अवगत कराती है.बदले दौर में सूचना क्रांति के फलस्वरूप जगदी जात की तिथि की सूचना पंचों के निर्णय के चंद सेकेंडों में ही हिंदाव के देश-विदेश में रहने वाले प्रवासियों तक पहुंच जाती है........................

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