निशाण अथवा बड़े आकार के झंडे देवी जगदी के परम प्रिय हैं. यहां भक्त जो मन्नत मांगते हैं, जगदी माता वह निश्चित तौर पर पूरी करती हैं और फिर मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालू निशाण चढ़ावे में जगदी को भेंट करते हैं. यह निशाण जगदी जात के प्रथम दिन ही निकलने वाले भारी-भरकम जात्रा काफिले में गाजे-बाजे के साथ अंथवालगांव में पहुंचाए जाते हैं. यहां जगदी को अर्पण के बाद फिर ये निशाण जगदी की संपत्ति बन जाते हैं, जिनके रखरखाव का दायित्व जगदी कमेटी का बन जाता है. अधिकांश निशाणों को जमा कर कुछ जगदी के साथ शिलासौड़ की जात्रा में शामिल किए जाते हैं. परंपरा के अनुसार जगदी जात की शुरुआत से ही चढ़ावे में चढ़ाए जाने वाले दर्जनों निशाण पंचों की दूर दृष्टि और माता जगदी की सात्विक पूजा के उत्कृष्ट उदाहरण हैं. आज जबकि कई मठ-मंदिरों में चढ़ावे हेतु बलि के नाम पर निरीह पशुओं के वध को रोकना शासन-प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती बना हुआ है, ऐसे में हिंदाव के पूर्वजों द्वारा जगदी की भक्ति एवं चढ़ावे के लिए शुरू यह निशाणों की परंपरा सम्पूर्ण राज्यवासियों के लिए प्रेरणादायी है.
Friday, July 2, 2010
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फिर उत्तराखंड की उपेक्षा
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