जगदी के चमत्कारों की चर्चा दिन-ब-दिन आम होने लगी थी. यह गांव-गांव में चर्चाओं का प्रमुख विषय बन गया था. देवी जगदी की स्थापना को लेकर नौज्यूला के पंचों में बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ. इन बैठकों के बारे में भी बैठक स्थल को लेकर कहा जाता है कि पंचों में इस बात को लेकर बहस छिड़ी कि बैठक कहां पर हो. इस बारे में पंगरियाणा-बडियार के मध्यस्थान की खोज शुरू हुई. परंतु उस दौरान पंगरियाणा में आबादी नहीं थी और आज के पंगरियाणा की आबादी पाली अथवा बंजौली में रहती थी. ठीक इसी प्रकार आज के बडियार ग्रामसभा अथवा बगर, सरपोली, चटोली मालगांव की आबादी पंगरिया के आसपास सिमटी थी. फिर कहा जाता है कि बैठक के स्थान के लिए जब पंचों में बहस हुई तो सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि तत्कालीन बस्तियों के मध्यस्थल में स्थित स्थान को पंचायत चौक बनाया जाए. हमारे बुजुर्गों ने बताया कि फिर बंजौली से दस हाथ की रस्सी (सामान्यत: जिसे घरों में जूड़ा या पगिला कहा जाता है) से ऊपर की ओर मापा गया और इसी कर्म में ऊपरी बस्ती से नीचे की ओर मापा गया. फिर बीच के मिलन स्थल का नाम पड़ा 'थर्पÓ. थर्प जो आज भी मौजूद है यह श्रमदान के तहत नौज्यूला के पूर्वजों ने तैयार किया है. कहते हैं फिर नौज्यूला की आम पंचायतें इसी थर्प में होने लगीं. आज भी जगदी जात के दिन जगदी जब शिलासौड़ के लिए निकलती है, तो चंद पलों के लिए यहां पर आती है. लेकिन कलांतर में जैसे-जैसे क्षेत्र की आबादी बढ़ी और लोगों के पशुधन के लिए चारे आदि की आवश्यकता बढ़ी, यहां पाली से आसपास के क्षेत्रों में लोगों का विस्तार हुआ. इसी क्रम में पाली से पंगरियाणा सहित नौज्यूला के अन्य क्षेत्रों में लोगों का विस्तार हुआ. फिर जब बस्तियां बदलती हैं तो व्यवस्थाएं बदलनी भी स्वाभाविक हैं और तब फिर पंचायत के लिए पंगरिया के चौक को नियत किया गया. पंगरिया का चौक फिर प्रमुख बैठक स्थल के रूप में चर्चित हुआ.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
फिर उत्तराखंड की उपेक्षा
केन्द्रीय मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में भी उत्तराखंड को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. जिससे पहाड़ की जनता निराश है. केंद्र सरकार में उत...
-
बुजुर्ग जनों से जब जगदी के विषय में हमने बातें शुरू कीं तो जगदी से जुड़े विभिन्न प्रसंग सामने आए. बताते हैं कि एक समय किन्हीं अपरिहार्य कारण...
-
उत्तराखंड युग-युगांतर से भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थली, तपस्थली और शांति प्रदाता रही है। हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं, कल कल करती नदिया...
-
उत्तराखंड राज्य निर्माण के १४ वर्ष पूरे हो गए हैं. सबसे पहले उत्तराखंड के शहीदों को शत-शत नमन. जब हम बात उत्तराखंड की करें तो अलग ...
No comments:
Post a Comment