Tuesday, June 29, 2010
शिलासौड़ में जात या रात्रि जागरण
अग्नि परीक्षा
अग्नि परीक्षा के दौर से भी गुजरी जगादीअस्था और विश्वास के बीच कभी ऐसे भी छण आते हैं, जब मनुष्य का अहम सृष्टि प्रदत्त व्यवस्थाओं को नकारते हुए स्वयं को सर्वोत्तम मानने की भूल कर बैठता है. हिंदाव की जगदी को भी इस दौर से गुजरना पड़ा और अंतत: देवी के चमत्कार के आगे नौज्यूला के लोग नतमस्तक हुए. हमारे बुजुर्गों ने जगदी सौड़ से मेला समापन के बाद बिना पीछे मुड़े भागने का रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि एक बार जब जगदी की जात मेले के समापन से पूर्व शिलासौड़ में सभी बाकियों पर देवी-देवता अवतरित हुए तो मंदिर परिक्रमा के दौरान जगदी के बाकी की टक्कर से स्थानीय पंच अध्वाण महापुरुष (तत्कालीन संयाणा) की टोपी सिर से नीचे जमीन पर गिर गई. अपनी टोपी के नीचे गिरने को अपना अपमान समझते हुए संयाणा जी ने निर्णय दिया कि देवता की सच्चाई की होनका साधना (अग्नि परीक्षा) ली जाएगी. पंचों नेे इस निर्णय के मुताबिक आस-पास से बड़ी मात्रा में लकडिय़ां एकत्र कर 'होनकाÓ की तैयारी की. बताते हैं जब अग्नि प्रचंड भभकने लगी फिर ढोल बजाकर जगदी की अग्नि परीक्षा का आह्वïान किया गया. मायावी माया के लिए यह ऐसी घड़ी थी कि इंसानों और देवताओं के बीच के अंतर को मूर्त रूप में सिद्ध कर जनविश्वास पर देवशक्ति की छाप छोडऩी थी. अत: जगदी अपने बाकी पर स्वयं अवतरित होकर ढोल गर्जना के साथ आग की लपटों में समा गई. जनश्रुति है कि जैसे ही जगदी का बाकी पत्थर की शिला से अग्रि में कूदा सारे लोग वहां से भाग खड़े हुए.
12 वर्ष के बाद होता है जगदी का जगदी का महायज्ञ
होम १२ वर्षों के अंतराल पर आयोजित किया जाता है. जगदी का महायज्ञ 'होमÓनौज्यूला का सबसे बड़ा प्रमुख यज्ञ है, जिसमें नौज्यूला के सभी थोकों के मान्यवर रोज यज्ञ में कई ब्राह्मïणों के मंत्रोचार के साथ आहूतियां देते हैं. होम के लिए पंचों की विशेष बैठकें होती हैं, जिसमें प्रत्येक परिवारों पर फांट (चंदा) निर्धारित कर कमेटी चंदा जमा करने की सुनिश्चिता तय करती है. महायज्ञ की पंचांगसम्मत शुभ मुहूर्त के मद्देनजर तिथि निर्धारित होती है. नारायण में फिर सारी तैयारियों के बाद होम शुरू होता है. जिस वर्ष होम होता है उस वर्ष जगदी शिलासौड़ से सीधे क्षेत्र भ्रमण पर निकल पड़ती है और प्रत्येक घरों में जाकर प्रजा की सुध लेती है. लोग अपने आंगन में जगदी का जर्बदस्त स्वागत करते हैं. देवी-बाकियों को पूजा-पिठाईं भेंटकर परिवार के सुख-चैन की कामना करते हैं. दिन भर गांव में प्रत्येक घरों की शुध लेने के बाद एक रात देवी उसी गांव में निवास करती हैं और गांव में सार्वजनिक प्रसाद भंडारे का आयोजन गांववासियों द्वारा किया जाता है. कई गांवों में चढ़ावे स्वरूप बकरे भी जगदी को भेंट किए जाते हैं. एक गांव का भ्रमण पूर्ण होने पर जगदी अगले पड़ाव की ओर रुख करती है और फिर इसी प्रकार सभी घरों एवं स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिरों में भेंट देती हैं. जिस गांव में जगदी दस्तक देती है उस गांव के लोग गाजे-बाजे के साथ जगदी का स्वागत करते हुए गांव की सीमा तक जगदी के साथ-साथ चलते हैं. साथ ही कमेटी के सदस्य एवं प्रमुख बाकी दिनजात से ही जगदी के साथ मौजूद रहते हैं. इसी प्रकार पूरी प्रजा दर्शन के बाद जगदी यज्ञस्थल नारायण में पूजा के लिए विराजमान होती है. ९ दिनों तक चलने वाले होम में प्रत्येक दिन के कार्यक्रम निर्धारित होते हैं और व्यवस्थित क्रम में ९ दिनों तक जारी रहते हैं.
होम का प्रमुख ओहदा था जगपति
किसी भी कार्य की सकुशल संचालन के लिए पहली आवश्यकता होती किसी सेनापति की, जिसके नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रम को निर्विघ्न संपन्न कराया जा सके. पूर्वजों द्वारा स्थापित इस भव्य सार्वजनिक यज्ञ (होम) के लिए भी नेतृत्व हेतु किसी एक व्यक्ति को 'जगपतिÓ नियुक्त करने की परंपरा शुरू हुई, लेकिन जगपति अपने नाम के अनुरूप होम संचालित करने का एक अतिविशिष्टि ओहदा था. सारे कार्यक्रम जगपति के निर्देश पर होते थे और इस पद पर यहां के नौज्यूला के प्रतिष्ठत व्यक्ति को आसीन किया जाता था. कालांतर में विभिन्न थोकों के विस्तार होने से व्यवस्थाओं में भी परिर्वतन हुए.
होम का प्रमुख आकर्षण जल घड़ी
हमारी हिंदू संस्कृति में कलश अथार्त कुंभ का बड़ा महत्व है. हिंदृ रीति-रिवाजों जैसे शादी-विवाह, पूजा-पाठ सहित सभी आवश्यक क्रियाओं में जलकुंभ कहीं न कहीं प्रमुख रूप से शामिल किए जाते हैं. उतराखंड में पांडव लीला एवं सार्वजनिक पूजाओं में कार्यक्रम संपन्न होने से पूर्व या अंतिम दिन प्रात:काल में जलघड़ी का विशेष आयोजन किया जाता है. नारायण मंदिर में होम के अंतिम दिन जलघड़ी की शोभायात्रा होम का विशेष आकर्षण है. हजारों दर्शकों से खच्चाखच भरे सीढ़ीनुमा खेतों के बीच मां जगदम्बा की डोली की अगुवाई में जलघड़ी की शोभायात्रा अति दर्शनीय होती है. जगदी की शोभायात्रा दर्जनों ढोल-नगाढ़ों के बीच नारायण मंदिर से कलश भरने के लिए स्थानीय जलस्रोत के लिए निकलती है. यहां जलस्रोत से मंत्रोच्चार के साथ जगदी स्नान कर अन्य लोग भी इस पवित्र जल की बूंदों से अपने को पवित्र कर धन्य समझते हैं. स्नान आदि के बाद जलघड़ी को भरकर जगदी का बाकी इसे सिर पर धारण कर मंदिर की ओर लौटते हैं. सैकड़ों लोगों द्वारा पंक्तिबद्ध होकर ऊपर से श्वेत एवं रंगीन वस्त्रों से ढंकी जलघड़ी की शोभायात्रा इस दौरान अति मनोहारी छटा विखेरती है.
संचालन के लिए नौज्यूला के पंचों के 16 गांवों की कमेटी
हिंदाव की जगदी यद्यपि क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख सार्वजनिक देवी है, परंतु जात, महायज्ञ, पूजा आदि के सफल संचालन के लिए नौज्यूला के पंचों के 16 गांवों की 32 सदस्यीय समिति बनाई गई है. इस समिति का नियत कार्यकाल खत्म होने पर नई समिति चयनित की जाती है. कमेटी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष के साथ ही प्रत्येक थोक के दो लोग सक्रिय सदस्य के रूप में चुने जाते हैं. जगदी जात एवं अन्य सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक संपन्न कराना कमेटी की प्रमुख जिम्मेदारी है. कमेटी का दायित्व होता है कि जब एक बार जगदी की जात या अन्य कार्यक्रम तय हो जाएं, तो फिर चाहे कोई भी बाधा रास्ते में क्यों न आ जाए, कार्यक्रम को संपन्न कराना है. जगदी जात के अवसर पर चाहे जगदी का शृंगार करना हो, या फिर शृंगार के बाद बाहर गिमगिरी पर निकालना हो, कमेटी के सदस्य तत्परता के साथ अपने कार्यों को अंजाम देते हैं. जगदी की यात्रा में कमेटी के सदस्य बिल्कुल एक तरह से जगदी के लिए सुरक्षा घेरा बनाकर जहां जगदी जाती है, वहां जगदी के साथ चलते हैं. जगदी के कार्यक्रमों की शुरुआत से लेकर समापन तक की जिम्मेदारी कमेटी के लोगों की होती है. नौज्यूला के पंचों की उक्त कमेटी जगदी की डोली, जगदी के बाकी सहित अन्य प्रतिष्ठित बाकियों सहित जात एवं अन्य कार्यक्रमों की सुनिश्चत समापन हेतुमुख्य आधार स्तंभ है. इसीलिए कमेटी में समिति के उच्च पदों पर नौज्यूला के प्रतिष्ठित या सयाणे जैसे व्यक्तित्व ही आसीन होते थे और इनका मकसद जगदी जात सहित सभी कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संपन्न करना ही होता था.
तांत्रिक का दुस्साहस
बुजुर्ग जनों से जब जगदी के विषय में हमने बातें शुरू कीं तो जगदी से जुड़े विभिन्न प्रसंग सामने आए. बताते हैं कि एक समय किन्हीं अपरिहार्य कारणों से जगदी की चोरी हो गई थी. जगदी स्नान हेतु बाड़ाहाट उत्तरकाशी गई थी. वहां से जब जगदी स्नान कर वापस लौटी तो भौंणा में यह तय हुआ कि जगदी अपनी चोरी का पता खुद लगाएगी. पंचों ने इस चोरी को जगदी के संज्ञान में डाला और जगदी सेे अपने चुराए गए सामान को वापस पाने का आह्वïान किया. उधर, जहां अंथवालगांव में कथित तौर पर यह सामान रखा गया था उस घर में पंचों के इस निर्णय की भनक लग कर हड़कम्प मच गया. बताते हैं कि इस दौर में अंथवालगांव निवासी एक ढोल बाधक तंत्र-मंत्र विद्या का ज्ञाता था, इस चोरी के इल्जाम से बचने के लिए वह परिवार इस मंत्र-तंत्र वाले के पास गया और संकट की इस घड़ी में अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की. इस ढोल बाधक ने उक्त व्यक्ति को रक्षा का आश्वासन दिया और बात को गोपनीय रखने की सलाह दी. बताते हैं फिर जैसे ही भौंणा से जगदी की डोली तय समयानुसार अंथवालगांव की और बढ़ी जगदी पर दिवांश (अवतरण) ऊफान पर था. जैसे-जैसे जगदी अंथवालगांव की ओर बढ़ी, तब लोगों में यह उत्सुकता और भी बढ़ गई कि जगदी किस घर में चोरी का सामान रखे होने का इशारा करती है. किंतु बताते हैं जैसे ही डोली अंथवालगांव पहुंची वैसे ही वह तांत्रिक ढोलवादक जगदी के आदर के लिए डोली की अगवानी करने लगा. ढोलवादक के मंत्रों के कारण जैसे ही जगदी आगे बढ़ी, जगदी के कपड़े उतर गए. इस घटना से पंचों में सन्नाटा फैल गया और अफरातफरी के बीच जगदी की चोरी का खुलासा नहीं हो सका.फिर बताते हैं कि उस दिन के बाद यह तांत्रिक एक दिन भी अंथवालगांव नहीं टिका और यहां से हमेशा के लिए रफ्फूचक्कर हो गया. खोजबीन से पता चला कि इस वादक के वंशज चमोली जिले के नीती-माणा में हैं, जहां आज भी जगदी के अभिशाप को भुगत रहे हैं.
जब विशेष दर्शन व्यवस्था के खिलाफ हुई आवाज बुलंद
...हर १२ वर्ष के अंतराल पर एक बार जगदी का होम (यज्ञ) होता है. इस होम में जैसा-जैसा समय बदला कई व्यवस्थाएं भी बदलीं. आज यद्यपि जगदी की सक्षम कमेटी समयानुकूल निर्णय लेती है, किंतु कहते हैं एक दौर ऐसा भी था जब यहां के कुछ खास लोगों को राजा द्वारा विशेष अधिकार दिये गये थे. यहां इस संबंध में एक ७५ वर्षीय वृद्ध बुद्धिजीवी बताते हैं कि जब नारायण में होम होता था तो चांजी के 'रौतोंÓ का उस दौर में काफी बोलबाला था. होम के दौरान यह लोग जब नारायण में आते थे तो इनकी रानियों के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था की जाती थी. आज की बात करें तो जैसे कही प्रसिद्ध मंदिरों में अतिविशिष्ट लोगों के लिए दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था होती है, वैसे ही उस दौर में चांजी के 'रौतोंÓ (रावत) के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था थी. लेकिन कहते हैं इस प्रथा का विद्रोह हुआ. यहां इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठीं. कहते हैं चांजी के रौतों को दिए जाने वाले विशेष तव्वजो के खिलाफ भौंणा के श्री पंचम सिंह रावत जी ने पहली आवाज उठाई और जगदी के होम में समानता की व्यवस्था लागू करवाई.
Friday, June 18, 2010
कैंतुरा महरों के कंधों पर है जिम्मेदारी
फिर नहीं हुई मुलाकात...
मोती वंश के हैं कमेटी के ढोल वादक
स्मरणीय है मयाली कंकण की यात्रा
और अबिंडा से ही वापस हो गए थे नौजूला के यात्री
आसपास की पट्टिïयों में भी आस्था और श्रद्धा के साथ लिया जाता है जगदी का नाम
बगडवालों के यहां विराजती है भिलंग की जगदी मां
उत्तराखंड युग-युगांतर से भारतीयों के लिए आध्यात्मिक शरणस्थली, तपस्थली और शांति प्रदाता रही है। हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं, कल कल करती नदियां, मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य, तीर्थस्थल, सीढ़ीनूमा खेत, छोटे-छोटे गांव मानव मन को अपनी ओर आकर्षित कर देते हैं। प्रत्येक गांव में शिवालय व विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर अपने आप में देवभूमि होने का प्रमाण है। उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में इन देवस्थलों पर कौथिग (मेले) लगते हैं. बड़े ही उत्साह के साथ लोग श्रद्धाभाव से अपने ईष्टों का पूजन करते हैं व उस मेले में शामिल होते हैं. मां जगत जननी भगवती पार्वती तो उत्तराखंड की आराध्य देवी कुलदेवी हैं. मां शक्ति की आराधना तो उत्तराखंड के घर-घर में की जाती है. उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद के अंतर्गत पट्टïी भिलंग में भी मां जगदम्बा की जात दी जाती है. संपूर्ण भिलंग पट्टïी की ईष्ट देवी है मां जगदी (जगदम्बा). प्रत्येक वर्ष घुत्तु के ऊपर बुगेलाधार में जगदी का उत्सव मनाया जाता है. इस मेले में भिलंग पट्टïी के चंदला, देवंज, महरगांव, राणी डांग, घणाती, चडोली, कंडार गांव, कोड़ी, रैतगांव, सटियाला, दरजियाणा, कोट, ऋषिधार, मल्ला गवांणा, तल्ला गवांणा, टमोटेणा, खाल, पुजारगांव, मेन्डू, सेंदवाल गांव, भाटगांव, गेंवालकुड़ा, कैलबागी, नगर कोट्ïयाणा, कन्याज इत्यादि गांव शामिल होते हैं. बुगेलाधार में मां जगदी का दिव्य मंदिर स्थापित है, इसके साथ-साथ नागेंद्र देवता, साधु की कुटिया व अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं. संपूर्ण भिलंग पट्टïी में ज्येष्ठ माह में प्रत्येक गांव जगदी की जात देता है और उसके बाद सभी गांवोंं की पंचायत बुलाकर एक तिथि निर्धारित की जाती है और उस दिन विशाल रूप से यह उत्सव मनाया जाता है. मां जगदी की पूजा अर्चना चंदला गांव के पैन्यूली जाति के ब्राह्मïणों द्वारा होती है. देवी जात के पहले दिन मेळाग- फॉन्टा (चंदा) जमा करके देवी के मूल स्थान 'टाटगÓ स्थान पर जाते हैं. टाटग एक स्थान है, जो कि बिशोन का डांडा (पर्वत) के नीचे है. टाटग स्थान पर एक शिला है, जिसे जगदी का मूल स्थान माना गया है. वहां रातभर उस शिला की पूजा होती है. रात्रभर सभी श्रद्धालू जागरण करते हैं. बिशोन का डांडा पंवाली बुग्याल से शुरू होता है और कुंणी, मंजेठी, जान्द्रीय सौड़ तक फैला है, यहां वर्षभर बारिस होती है. बिशोन डांडा की एक ओर बांगर व लस्या पट्टिïयां हैं तथा दूसरी ओर भिलंग व दोणी हिंदाव पट्टïी है. इस घनघोर जंगल में मां जगदी आछरियों से मिलने जाती है तथा रातभर पूजापाठ के बाद टाट्ग स्थान से दूसरे दिन बुगेलाधार पहुंचती है. बुगेलाधार पहुंचने पर उस दिन इस स्थान पर बहुत बड़ा मेला (कौथिग) लगता है. इस कौथिग को संपूर्ण भिलंग पट्टïी के लोग हर्षोउल्हास के साथ मनाते हैं. उस दिन बुगेलाधार में एक ओर जहां बाजार सजा रहता है, वहीं दूसरी ओर ढोल-दमाऊं की थाप पर लोग पांडव नृत्य करते हैं. दूर-दूर से ध्याणे (महिलाएं) आकर एक-दूसरे के गले लगती हैं और शृंगार की विभिन्न वस्तुएं खरीदती हैं. लोग देवी की डोली को दिनभर कंधे पर उठाकर नचाते हैं. संपूर्ण पट्टïी के लोग अपना न्यूता डालते हैं, देवी का पसुवा के माध्यम से उनका संदेश सुनते हैं. तत्पश्चात सायंकाल को देवी की डोली तल्ला गवाणा को प्रस्थान करती है, जहां वह बगडवाल लोगों के स्थान पर विराजती है. पट्टïी के जिस गांव में पूजा होती है, वे इस डोली को वहां से सम्मान से ले जाते हैं तथा उसकी पूजा अर्चना करते हैं. बुगेलाधार में स्थित यह मंदिर जगदंबा सर्व सेवा समिति, मुंबई द्वारा बनाया गया है. यह समिति सन्ï १९६५ में बनी थी तथा आज से २०-२२ वर्ष पहले यह मंदिर बनाया गया था. बिनाशकारी भूकंप आने से मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. परंतु मां जगदी के आशीर्वाद से मुंबई की समिति ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया. इसके साथ-साथ जगदम्बा सर्व सेवा समिति, मुंबई ने नागेंद्र देवता का मंदिर व एक भव्य जगशाला का भी निर्माण करवाया. मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र धन धान्य से परिपूर्ण है. देवस्थानों के साथ-साथ यह क्षेत्र रमणिक भी है. कारण यहां से पंवाली कांठा, त्रिजुगीनारायण, केदारनाथ पैदल मार्ग, खतलिंग ग्लेशियर, सहस्त्रताल, गंगी, कल्याणी जैसे पवित्र व मनमोहक स्थल भी हैं. आने वाले समय से तीर्थाटन व पर्यटन के क्षेत्र में यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि मां जगदी के आशीर्वाद से यह क्षेत्र उत्तराखंड का पांचवां धाम होगा. जय जगदी मां!(लेखक हिमशैल, मुंबई के प्रधान संपादक हैं)
उत्तराखंड एक झलक
नौज्यूला का परिचय
जब 2008 के चुनाव में अखबारों की सुर्खियों में रहा हिंदाव क्षेत्र
Thursday, June 17, 2010
मेरा परिचय
Wednesday, June 16, 2010
जनप्रतिनिधियों से पर्यटन क्षेत्र बनाने की मांग
हिंदाव की जगदम्बा का प्रभाव हिंदाव तक ही सीमित नहीं है. यद्दपि जगदी हिंदाववासियों की आराध्य देवी है मगर आस-पास की पट्टिïयों में भी जगदी को अति प्रचाधारी देवी के नाम से जाना जाता है. यहां की पड़ोसी पïट्टïी ग्यारह गांव हिंदाव, नैलचामी, भिलंग, केमर अर्थात समूचे भिलंगना प्रखंड एवं लस्या, भरदार में जगदी को प्रमुख देवियों में गिना जाता है. जगदी जात के दिन दूर-दूर से लोग यहां देवी दर्शन के लिए आते हैं. साथ ही यहां की अन्य पट्टिïयों में विवाहित महिलाएं भी इस दिन का दिल थाम कर इंतजार करती हैं. जगदी जात के दौरान हिंदाववासियों के घरों में नाते-रिश्तेदारों का तांता लगा रहता है और अपने इस प्रमुख मेले के लिए क्षेत्रवासियों द्वारा अपने रिश्तेदारों/परिचितों को यहां आने का न्यौता दिया जाता है. हाल में आवागमन की सुलभता, संचार एवं प्रसार माध्यमों के चलते जगदी की जात राज्य के अन्य प्रमुख मेलों की तरह प्रसिद्ध हो रही है. उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों के मद्देनजर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की मेले में बढ़-चढ़ कर उपस्थिति मेले को राज्यस्तर पर पहचान दिलाने की ओर अग्रसर है. क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों एवं क्षेत्रीय प्रबुद्ध वर्ग के प्रयासों के चलते उम्मीद की जानी चाहिए कि जगदी की जात क्षेत्रीय सीमाओं को लांगकर राज्य में प्रमुख मेलों में सुमार होगी. दिनोंदिन जिस प्रकार राजनीतिक दलों के नेता एवं जनप्रतिनिधियों का रुख इस क्षेत्र की प्रमुख देवी की जगदी जात की ओर बढ़ रहा है, मेले में घोषणाएं एवं मांगें भी होने लगी हैं. क्षेत्र को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की भी मांग उठने लगी है.
अपनी बात
श्री शंकरसिंह रावतलैणी,
पंगरियाणा, हिंदाव।
माननीय पाठकों,
नौज्यूला हिंदाव की परमशक्तिमान, दुखों का निवारण करने वाली, हर घर-हर दिल में वास करने वाली, हम सबकी आस्था की प्रतीक जगतवंदनी देवी को मेरा शत्ï शत्ï नमन.इससे पूर्व हालांकि मुझे कई विषयों पर लेख लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, लेकिन मां जगतवंदनी जगदी के विषय में लिखने में जो अपनत्व का भाव महसूस हो रहा है वह बहुत ही सुखदायी है. वर्षों पूर्व जब में बहुत छोटा था और स्कूल पढ़ता था तब की यादों की तरफ में थोड़ा जाना चाहूंगा. साल के वो दो दिन ''दिन जात एवं जगदी जातÓÓ पूरे साल भर का इंतजार इन दो दिनों के लिए. मां जगदम्बा की इस पारंपरिक जात की शुरुआत में बाकी द्वारा बजाए जाने वाले शंखनाद से शुरू हुआ हृदय लुभावन, आस्था भरा आनंद, रिश्तेदारों का आगमन, घर के बुजुर्गों द्वारा दिया जाने वाला जात का खर्च, दोनों दिनों मां जगदी की डोली का रंगारंग रूप, उत्तेजित करने वाले मां के भक्तों द्वारा बजाए जाने वाले ताल, बाकियों द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद, रातभर शिलासौड़ में दिवारे बैठने का सौभाग्य, बाकियों द्वारा पारंपरिक नृत्य आदि कुछ ऐसे दृश्य स्मृति पटल पर नजर आते हैं जो आज भी मन को भाव-विभोर करते हैं. लेकिन जिन भाग्यशालियों को आज भी जगतवंदनी मां के इस दो दिवसीय वार्षिक महोत्सव (जात) में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त है वे मां का आशीर्वाद पाकर धन्य हैं.जैसा कि हम सभी को ज्ञात है कि उत्तराखंड की देवभूमि पर आज भी परमेश्वर हमारे देवी-देवताओं के रूप में मौजूद हैं. परदेश में लोग कहानियां सुनाते हैं कि हमारे यहां पुराने जमाने में ऐसी देवीय शक्तियां हुआ करती थीं, लेकिन हिंदाववासियों को तो यह वास्तविकता आज भी दृष्टिगोचर होती है. मां की महिमा का असर हर उस प्रार्थना में है जो हम सच्चे दिल से मां के चरणों में अपर्ण करते हैं. हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म मां की धरती पर हुआ और आजीवन मां का आशीर्वाद हमें मिलता रहेगा, यही परम सौभाग्य है हर हिंदाववासी का.मैं अपने समाज के प्रति भी गौरवान्वित महसूस करता हंू कि आज भी हमने अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को नहीं त्यागा, बल्कि उन्हें और भी उत्साह के साथ बढ़ावा देकर आस्था और विश्वास को सुदृढ़ किया है.तेजी से बदलते वक्त ने सामाजिक सोच के दायरे को भी बदला है. अत्याधुनिकीकरण ने जो वैज्ञानिक तरीके हमें मुहैया कराए, उसने हमसे छीना है तो हमारी धार्मिक आस्था और विश्वास, परंतु मां जगदी की महिमा इतनी सशक्त है कि मां के प्रति हमारी आस्था आज भी वही है, बल्कि और भी सुदृढ़ हुई है. मैं हर क्षेत्रवासी से विनती करूंगा कि इस आस्था को अपनी धरोहर बनाए रखें और मां जगदी की कृपा से आपके कार्य मंगलमय होते रहेंगे.साथ ही में श्री ज्योति राठौर एवं श्री गोविंदलाल आर्य को बधाई देता हंू कि उन्होंने एक नेक सोच का परिचय दिया. मां जगदी की महिमा घर-घर में पहुंचाने का काम निश्चित रूप में सराहनीय है. इस वर्ष मां जगदम्बा का १२ वर्ष बाद आने वाला यज्ञ (होम) होने जा रहा है, जिसमें हजारों भक्तों की मनोकामनाएं मां पूरी करेंगी, यह मेरी कामना है. मां के चरणों में समर्पित यह पुस्तक मां की महिमा की जानकारी भक्तों को देगी जो निश्चित रूप से वर्ष २००९ के होम को ऐतिहासिक और यादगार बना देगी.मैं एक बार पुन: मां के चरणों में नमन करते हुए नौज्यूला की समस्त जनता को प्रणाम करता हंू.''जय जगतवंदनी मांÓÓ(स्तंभकार मुंबई में कई सामाजिक संस्थाओं का सक्रिय संचालन कर रहे हैं.)
उत्तराखंड में सात्विक पूजा की मिसाल है मां जगदी
इंटरनेट से भी हो सकेंगे मां जगदी के दर्शन
जो पाया जगदी की कृपा से पाया
श्री शंकर सिंह कुंवर
उत्तराखंडवासियों में उद्योगजगत के प्रमुख हस्ताक्षर कुराणगांव के मूल निवासी श्री शंकर सिंह कुंवर मुंबई में करोबार में मिली सफलता को जगदी की कृपा मानते हैं। उद्योगपति श्री शंकर सिंह कुंवर अपने मूलगांव कुराणगांव से सन् १९६४ के दौरान मुंबई आए। मुंबई में आने के बाद कुंवर जी ने भी रोजगार के लिए आने वाले आम प्रवासियों की तरह अपनी आजीविका शुरू की. किंतु मन में नौकरी से ऊपर उठ कर खुद के व्यवसाय करने की इच्छाशक्ति प्रबल थी. जगदी की कपा और श्री कुंवर के कठिन परिश्रम के बल पर कुंवर जी अपना व्यवसाय करने में सफल रहे और आज मुंबई में उत्तराखंड के तमाम उद्योगपतियों में श्री शंकर सिंह कुंवर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है. श्री कुंवर अपनी इस उपलब्धि को मां जगदी का आशीर्वाद मानते हैं और क्षेत्र के लिए अपने योगदान को तत्पर हैं. कुंवर अपनी कर्म भूमि मुंबई को सलाम करते हैं, जहांपर उन्हें मेहनत का भरपूर प्रतिफल मिला और आज एक विशेष मुकाम हासिल किया है. मायानगरी मुंबई में कारोबार को नई बुलंदियों पर पहुंचाने की आपाधापी के बावजूद श्री कुंवर का जन्मभूमि के प्रति जुड़ाव कम नहीं है. यह मातृभूमि अपार प्रेम के चलते श्री कुंवर जी ने चाहे फिल्मों के जरिए हो या क्षेत्रवासियों को रोजगार मुहैया कराने की बात, कुंवर जी हमेशा इस जन्मभूमि को हमेशा प्राथमिकता दी है. कुंवर जी के ही शब्दों में कि मानों उनका शरीर भले मुंबई में हो, किंतु एक प्राण वहां भी बसता है. मुंबई के सामाजिक सरोकारों एवं प्रवासी उत्तराखंडियों की विभिन्न संस्थाओं में कुंवर जी की सहभागिता नौज्यूला को गौरवान्वित करती है. श्री कुंवर जी ने अपने कारोबार के कुशल संचालन के साथ ही जन्मभूमि के वाशिंदों के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं. हिंदाव ही नहीं, समूचे उत्तराखंड से रोजगार के लिए मुंबई आने वाला जो व्यक्ति श्री कुंवर जी के पास पहुंचा, उसे रोजगार दिलाने में मदद की है. श्री कुंवर हिंदाव क्षेत्र एवं आस-पास के हजारों लोगों के विदेश जाने के सपने को साकार कर चुके हैं. यह कार्य आज भी सतत जारी है।
जगदी को नमन
श्री दिनेश शाह
नौज्यूला की आराध्य देवी होने के नाते नौज्यूलावासियों की जहां जगदी के प्रति अटूट आस्था है, वहीं हिंदाव के पास-पड़ोस के लोग भी जगदी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं. अपने पुश्तैनी कारोबार को कुशलतापूर्वक संचालित कर रहे श्री दिनेश शाह हिंदाव की जगदी को नमन करते हैं. सोने की विश्वसनीयता एवं शुद्धता की जब भी बात आती है तो देश में 'मुंबई के सोनेÓ को पहला स्थान प्राप्त है. इसी विश्वास और शुद्धता को जब गढ़वाली गहनों कीशक्ल में ढालने-गढऩे की बात हो तो गढ़वालवासियों को मुंबई में एक ही नाम याद आता है और वह नाम है, श्री भरपूर शाह का. स्व. भरपूर शाह १२ वर्ष की उम्र में बजियालगांव (ग्याहरागांव हिंदाव) से रोजगार की तलाश में शहरों की ओर निकले. भरपूर शाह ने अपने अन्य साथियों के साथ लगभग १० वर्ष तक मसूरी में काम किया, किंतु स्थायी रोजगार के लिए यह नाकाफी था. श्री शाह १९६१ में मसूरी से मुंबई आए. मुंबई में उस दौर में रोजगार की कमी नहीं थी. सरकारी-अर्धसरकारी कंपनियों में रोजगार आसानी से उपलब्ध था, किंतु शाह जी की दूरदृष्टि का परिणाम था कि उन्होंने नौकरी के बजाय पूर्वजों से विरासत में मिली स्वर्णकला को अपने कारोबार के लिए सर्वोपरि माना और देखते ही देखते गढ़वाली-कुमाऊंनी गहनों के लिए एक विश्वसनीय नाम बन गए. श्री भरपूर शाह ने अपने कारोबार में अपने सुपुत्र श्री दिनेश शाह को भी पारंगत बनाया और विज्ञान स्नातक दिनेश शाह ने इस पुश्तैनी कारोबार में आधुनिक फैशनकला के कुशल संयोजन से 'सोने में सुहागाÓ की कहावत को सही मायनों में चरितार्थ किया. अपनी विरासत अपने पुत्र के पास छोड़कर श्री भरपूर शाह ने ३० नवंबर २००७ को अंतिम सांस ली. इससे पूर्व २४ मई १९९७ में भरपूर शाह की पत्नी श्रीमती राजमती शाह का निधन हुआ. दिनेश शाह मुंबई में अपने कारोबार को नया आयाम दे रहे हैं और आज जबकि उनके ग्राहक हर वर्ग राज्य के हैं, किंतु गढ़वाली-कुमाऊं के ग्राहकों के प्रति अपार स्नेह है और गढ़वाली-कुमाऊंवासियों के गहनों को बनाकर इसे मातृभूमि की सेवा मानते हैं. आज जबकि सोने की कीमत आसमान छू रही है, ऐसे में सीधे-सादे पहाड़वासियों को खरा सोना मिले, दिनेश शाह इस ध्येय के साथ सेवारत हैं.
जगदी के बाकियों की सूची
(१) श्री बुुटेर गंवाण (नेगी)
(२) श्री बैशाखू सिंह
(३) श्री केशरू सिंह
(४) श्री देबूसिंह
(५) श्री मुर्लूसिंह नेगी
(६) श्री कलीसिंह
(७) श्री दुर्गा सिंह
(८) श्री सौकार
(९) श्री रूपचंद सिंह
(१०) श्री रघुबीर सिंह नेगी (वर्तमान
जगदी के पुजारी अवधि
(१) श्री शीशराम थपलियाल (ज्ञात नहीं)
(२) श्री शंकरदत्त थपलियाल (४५ वर्ष)
(३) श्री पिताम्बरदत्त थपलियाल (२७ वर्ष)
(४) श्री महिमानंद थपलियाल (१८ माह)
(५) श्री कमलनयन थपलियाल (३२ वर्ष)
(६) श्री यशोदानंद थपलियाल (वर्तमान)
बताया यह भी जाता है कि जगदी के पुजारी के तौर पर श्री ईश्वरी दत्त थपलियाल जी भी नियुक्त हुए थे, हालांकि इनके पास एक दिन भी देवता रहने का जिक्र नहीं मिला है।-नोट- पूज्य बाकी एवं सम्मानित पुजारियों की सूची में उल्लेखित नामों को यद्यपि क्रमवार देने का प्रयास किया गया है, लेकिन यह कार्यकाल आगे-पीछे संभाव्य हैं।
माँ जगदी
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